AP SSC 10th Class Hindi Solutions Chapter 8 स्वराज्य की नींव

AP State Board Syllabus AP SSC 10th Class Hindi Textbook Solutions Chapter 8 स्वराज्य की नींव Textbook Questions and Answers.

AP State Syllabus SSC 10th Class Hindi Solutions Chapter 8 स्वराज्य की नींव

10th Class Hindi Chapter 8 स्वराज्य की नींव Textbook Questions and Answers

InText Questions (Textbook Page No. 43)

प्रश्न 1.
शासक को विपत्ति की हालत में कैसे काम लेना चाहिए?
उत्तर:
शासक को विपत्ति की हालत में धैर्य और समयस्फूर्ति से काम लेना चाहिए।

प्रश्न 2.
आपकी नज़र में आदर्श शासक के लक्षण क्या हो सकते हैं?
उत्तर:
मेरी नज़र में तो आदर्श शासक का लक्षण यह है कि उसे अधिकार में क्षमा गुण होना चाहिए।

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प्रश्न 3.
सुव्यवस्थित शासन के गुण क्या हो सकते हैं?
उत्तर:
सबका बराबर ध्यान रखना, विपत्ति में धैर्य और समयस्फूर्ति होना। कानून और नियमों का समान रूप से अनुकरण करना और अधिकार में क्षमा गुण ये सब आदर्श शासक के लक्षण हैं।

InText Questions (Textbook Page No. 45)

प्रश्न 1.
लक्ष्मीबाई किससे बातें कर रही हैं?
उत्तर:
लक्ष्मीबाई अपनी सहेली कर्नल जूही से बातें कर रही हैं।

प्रश्न 2.
उन्हें किस बात की चिंता सता रही है?
उत्तर:
लक्ष्मीबाई को इस बात की चिंता सता रही है कि वह झाँसी, कालपी और ग्वालियर के स्वराज्य के लिए युद्ध कर रही थी लेकिन अब तक उसे जीत नहीं मिली।

InText Questions (Textbook Page No. 48)

प्रश्न 3.
लक्ष्मीबाई तात्या से क्यों नाराज़ थीं? तात्या ने उन्हें क्या आश्वासन दिया ?
उत्तर:
लक्ष्मीबाई तात्या से इसलिए नाराज़ थी कि वह समझती है कि वह राव साहब के साथ विलासिता में डूबे हैं। रानी की बातों से तात्या को अपनी भूल महसूस हुई। तात्या लक्ष्मीबाई को आश्वासन देता है कि वह देशभक्तों की आवश्यकता को पूरा करने देशभक्त होकर युद्ध में भाग लेता हैं। उसकी हर आज्ञा का
पालन करता है।

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प्रश्न 4.
लक्ष्मीबाई साहसी नारी थीं। उदाहरण के द्वारा सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
लक्ष्मीबाई साहसी नारी थीं। वह झाँसी, कालपी और ग्वालियर राज्यों के स्वराज्य के लिए युद्ध करती
थी। वह महिला सैनिकों को भी इकट्ठा करके देश की आज़ादी के लिए लडती । अपनी बातों से तात्या को जागरूक किया। वह नूपुरों के झंकार के स्थान पर तोपों का गर्जन सुनना चाहती थी। वह रणभूमि में मौत से जूझना चाहती थी। इसलिए हम कह सकते हैं कि लक्ष्मीबाई साहसी नारी थी।

अर्थग्राह्यता-प्रतिक्रिया

अ) प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

प्रश्न 1.
मार्ग में हिमालय के अड़ने, डरावनी लहरों के थपेड़े मारने, नाविकों के सो जाने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
इसका अभिप्राय यह है कि झाँसी लक्ष्मीबाई ने झाँसी, कलापी और ग्वालियर आदि राज्यों के स्वराज्य के लिए अंग्रेजों और रघुनाथराव से लड रही है। परंतु मंजिल हर बार पास आकर दूर चली जाती है। लक्ष्मीबाई स्वराज्य को पाते देखती है लेकिन मार्ग में हिमालय जैसी अंग्रेजी सेना अड जाती है वह सेना जो है वह महासागर की जैसे डरावनी लहरें थपेडे मारने लगती हैं। यदि लक्ष्मीबाई उन्हें जूझती तो नाविक रूपी सेना सो जाते हैं। इसका मतलब यह है कि नाविक रूपी सेना में हराने की शक्ति नहीं है।

प्रश्न 2.
यह एकांकी सुनने के बाद उस समय की किन परिस्थितियों का पता चलता है?
उत्तर:
यह एकांकी सुनने के बाद हमें उस समय की इन परिस्थितियों का पता चलता हैं –

  • हमें उस समय के राजनीतिक परिस्थितियों का पता चलता है।
  • हमें उस समय के जनता की स्वतंत्रता तथा स्वराज्य भावनाओं की पता चलता है।
  • हमें उस समय की वीरांगनाएँ जैसे झाँसी लक्ष्मीबाई और जूही और वीर पुरुष तात्या की वीरता के बारे में पता चलता है।
  • हमें उस समय के सामाजिक परिस्थितियाँ जैसे ऊँच – नीच, छुआछूत और विलासप्रियता आदि के बारे में भी पता चलता है।
  • हमें यह भी पता चलता है कि स्वराज्य प्राप्ति के लिए नींव का पत्थर की तैयारियाँ हो रही है।
  • हमें उस समय के युद्ध की परिस्थितियों के बारे में भी पता चलता है।

आ) पाट पढ़िए। प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

प्रश्न 1.
तात्या कौन थे?
उत्तर:
तात्या बाँदा के नवाब सरदार तथा सेनापति थे।

प्रश्न 2.
बाबा गंगादास ने रानी लक्ष्मीबाई से क्या कहा था?
(या)
बाबा गंगादास ने क्या कहा था?
उत्तर:
बाबा गंगादास ने रानी लक्ष्मीबाई से कहा था कि “जब तक हमारे समाज में छुआछूत और ऊँच – नीच का भेद नहीं मिट जाता, जब तक हम विलासप्रियता को छोड़कर जन सेवक नहीं बन जाते, तब तक स्वराज्य नहीं मिल सकता। वह मिल सकता है केवल सेवा, तपस्या और बलिदान से।”

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प्रश्न 3.
रानी लक्ष्मीबाई ने क्या प्रतिज्ञा की थी?
उत्तर:
रानी लक्ष्मीबाई ने प्रतिज्ञा की थी कि “मैं अपनी झाँसी नहीं दूंगी।” मैं अकेली हूँ। लेकिन उससे क्या ? मैं अकेले ही झाँसी लेकर रहूँगी।”

प्रश्न 4.
जूही तात्या का पक्ष क्यों लेती है?
उत्तर:
जूही तात्या का पक्ष इसलिए लेती है कि वह उसे अपना स्वामी मानती है। उससे वह प्यार करती है।

इ) पाठ के आधार पर आशय स्पष्ट कीजिए।

प्रश्न 1.
स्वराज्य प्राप्ति से बढ़कर है स्वराज्य की स्थापना के लिए भूमि तैयार करना, स्वराज्य की नींव का पत्थर बनना।
उत्तर:
इस वाक्य को झाँसी रानी लक्ष्मीबाई की कर्नल जूही लक्ष्मीबाई से कहती है। स्वराज्य प्राप्ति से बढ़कर है स्वराज्य की स्थापना के लिए भूमि तैयार करना, स्वराज्य की नींव का पत्थर बनना। इसका आशय यह है कि स्वराज्य के लिए सेना को तैयार करना, उन्हें प्रशिक्षण देना, तलवार, बंदूकें आदि शास्त्रों को इकट्ठा करना, अश्वबल को तैयार करना, स्वराज्य तथा स्वतंत्रता भावनाओं को जनता में व्याप्त करना आदि हैं।

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प्रश्न 2.
शंकाएँ अविश्वास पैदा करेंगी और उस अविश्वास से उत्पन्न निराशा को दूर करने के लिए पायल की झंकार और भी झलक उठेगी।
उत्तर:
इस वाक्य को मुंदर लक्ष्मीबाई से कहती है। इसका आशय यह है कि शंकाएँ अविश्वास को पैदा करते हैं। अविश्वास से निराशा उत्पन्न होता है। उसे दूर करने के लिए तो पायल की झंकार झनक उठेगी। ब्राह्मणों के आशीर्वाद का स्वर तेज़ उठेगा।

ई) गद्यांश पढ़कर प्रश्नों के उत्तर लिखिए।

भारत का संविधान सभी महिलाओं को समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14), राज्य द्वारा कोई भेदभाव नहीं करने (अनुच्छेद 15 (1)), अवसर की समानता (अनुच्छेद 16), और समान कार्य के लिए समान वेतन (अनुच्छेद 39 (घ)) का आश्वासन देता है। इसके अतिरिक्त यह महिलाओं और बच्चों के पक्ष में राज्य के द्वारा विशेष प्रावधान (अनुच्छेद 15 (3)) बनाने की अनुमति देता है। महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुँचाने वाली अपमानजनक प्रथाओं का उन्मूलन (अनुच्छेद 51 (अ), (ई) के भी अधिकार देता है। इन सबका पालन करना हमारा कर्तव्य है।
प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1.
यहाँ किसके बारे में बताया गया है?
उत्तर:
यहाँ महिलाओं और बच्चों को संविधान द्वारा प्राप्त विविध अधिकारों के बारे में बताया गया है।

प्रश्न 2.
अनुच्छेद 15 (1) में क्या बताया गया है?
उत्तर:
अनुच्छेद 15 (1) में राज्य द्वारा कोई भेदभाव नहीं करने की बात के बारे में बताया गया है।

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प्रश्न 3.
किस अनुच्छेद के अनुसार महिलाओं को समान कार्य के लिए समान वेतन की बात कही गयी है?
उत्तर:
अनुच्छेद 39 (घ) के अनुसार महिलाओं को समान कार्य के लिए समान वेतन की बात कही गयी है।

अभिव्यक्ति – सृजनात्मकता

अ) इन प्रश्नों के उत्तर तीन-चार पंक्तियों में लिखिए।

प्रश्न 1.
एकांकी के आधार पर बताइए कि “स्वराज्य की नींव’ का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:

  • एकांकी के आधार पर बतायेंगे तो “स्वराज्य की नींव” का अर्थ या तात्पर्य यह है कि स्वराज्य तथा
  • स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए सेना को तैयार करना है।
  • सेना को युद्ध कला का प्रशिक्षण देना है।
  • युद्ध सामग्री संचित करना है।
  • अनुशासन से युक्त सैनिकों को तैयार करना है।
  • स्वराज्य के लिए बलिदान देना भी स्वराज्य का नींव है।

प्रश्न 2.
महारानी लक्ष्मीबाई का कौनसा कथन तुम्हें अच्छा लगा ? क्यों ?
उत्तर:
महारानी लक्ष्मीबाई का यह कथन जो तात्या से कही गयी – ‘तो जाओ, तलवार संभाल लो। नूपुरों की झंकार के स्थान पर तोपों का गर्जन होने दो। भूल जाओ राग – रंग। याद रखो हमें स्वराज्य लेना है। हमें रण भूमि में मौत से जूझना है।” मुझे अच्छा लगा।

यह कथन मुझे इसलिए अच्छा लगा कि लक्ष्मीबाई एक स्त्री होने पर भी तलवार हाथ लेकर युद्ध करना चाहती है। स्त्रियाँ नूपुरों की झंकार को पसंद करते हैं लेकिन लक्ष्मीबाई उसके स्थान पर तोपों का गर्जन सुनना चाहती है। स्वराज्य के लिए रणभूमि में प्राणों को भी अर्पित करना चाहती है।

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आ) वीरांगना लक्ष्मीबाई देशभक्ति की एक अद्भुत मिसाल थीं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पाठ का नाम : स्वराज्य की नींव
लेखक : श्री विष्णु प्रभाकर
विधा : एकांकी पाठ

“खूब लडी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी” – सुभद्रा कुमारी चौहान जी की यह पंक्ति लक्ष्मीबाई की वीरता को प्रकट करती है। लक्ष्मीबाई ने यह सिद्धकर दिखाया कि अबला हमेशा अबला नहीं रहती। आवश्यकता पड़ने पर वह सबला भी बन सकती है। लक्ष्मीबाई ने सच्चे अर्थों में देश की स्वतंत्रता की नींव रखी थी। देश के प्रति उनकी कर्मपरायणता बहुत अधिक थी।

वह झाँसी को स्वतंत्रता तथा स्वराज्य दिलाने के लिए अंग्रेजी सरकार से बड़ी वीरता के साथ युद्ध करती है। नारी सेना को तैयार करती है। वह झाँसी, कालपी और ग्वालियर के लिए अंग्रेजों से लडती है।

झाँसी लक्ष्मीबाई सेवा, बलिदान और तपस्या की देवी है। वह नूपुरों की झंकार के स्थान पर तोपों का गर्जन सुनना चाहती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि वीरांगना लक्ष्मीबाई देश भक्ति की एक अद्भुत मिसाल थी।

इ) ‘स्वराज्य की नींव’ एकांकी को अपने शब्दों में कहानी के रूप में लिखिए।
(या)
वीरांगना लक्ष्मीबाई की देशभक्ति का एकांकी के आधार पर परिचय दीजिए।
उत्तर:
पाठ का नाम : स्वराज्य की नींव
लेखक : श्री विष्णु प्रभाकर
विधा : एकांकी पाठ

प्राचीन जमाने की बात है। झाँसी नामक एक राज्य था। महारानी लक्ष्मीबाई उसकी पालिका थी। वह अबला नहीं सबला है। वह पुरुषों के जैसे ही युद्ध करती थी। वह “मर्दानी” थी।

एक बार की बात है। उसके और उसके अगल – बगल के राज्यों पर अंग्रेजों का आक्रमण होने लगा। अंग्रेज़ों ने राज्य संक्रमण सिद्धांत को अपनाकर कई राज्यों को हस्तगत करने लगे। तो झाँसी की रानी वीरांगना लक्ष्मीबाई नारी सेना को तैयार करके इसके विरुद्ध डटकर रही।

झाँसी, कलापी और ग्वालियर आदि पर गोरों का आक्रमण हो रहा था। इसलिए अंग्रेजों के विरुद्ध झाँसी लक्ष्मीबाई युद्ध भूमि में कूद पड़ी। लक्ष्मीबाई प्रतिज्ञा करती है कि झाँसी को कभी नहीं दूंगी। उसकी रक्षा करूँगी।

झाँसी सेवा, तपस्या और बलिदान से स्वराज्य तथा स्वतंत्रता पाना चाहती थी। वह जूही, मुंदर, तात्या आदि वीरों के सहारे स्वराज्य प्राप्ति के लिए भूमि तैयार करने नींव का पत्थर बनाती रही।

वह अपनी सेना में अनुशासन स्थापित करती है। विलासिता उसके लिए असह्य था। वह समाज में छुआछूत, ऊँच – नीच आदि भावनाओं को दूर करना चाहती थी।

झाँसी लक्ष्मीबाई नूपुरों के कार के स्थान पर तोपों का गर्जन सुनना चाहती थी। वह युद्ध भूमि में स्वराज्य प्राप्ति नहीं कर सकेगी तो वहीं मर जाना चाहती थी। वह सदा युद्ध के लिए ललकारती थी।

विशेषता : देश के लिए मर मिटने की प्रेरणा मिलती है।

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ई) साहस, वीरता, आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता के महत्व पर दो – दो वाक्य लिखिए।
उत्तर:
हमारे जीवन में साहस, वीरता, आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता का महत्व अधिक है।
साहस :

  • मानव जीवन में साहस एक अदभुत शक्ति है।
  • साहस के बिना हम कोई काम नहीं कर सकते।
  • साहस से ही हमें किसी काम में विजय मिलता है। वीरता
  • मानव जीवन में साहस के साथ – साथ वीरता का भी होना चाहिए।
  • वीरता एवं साहस दोनों एक साथ रहते हैं।
  • जिसमें साहस है उसी में वीरता का दर्शन होता है।
  • हम वीरता से ही वीर बनते हैं।

आत्मविश्वास :

  • हम जो भी काम करते हैं उसे आत्मविश्वास के साथ करना चाहिए।
  • आत्मविश्वास के साथ किये गये कार्य सफल होते हैं।
  • आत्मविश्वास सफलता की कुंजी है।

आत्मनिर्भरता :

  • आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता दोनों हर एक में होना बहुत आवश्यक है।
  • जिसमें आत्मविश्वास अधिक है उसी में आत्मनिर्भरता भी अधिक होती है।

भाषा की बात

अ) सूचना पढ़िए। वाक्य प्रयोग कीजिए।

1. नारी, मित्र, प्रेम (एक – एक शब्द का वाक्य प्रयोग कीजिए और उसके पर्याय शब्द लिखिए।)
उत्तर:
वाक्य प्रयोग

  1. नारी – झाँसी लक्ष्मीबाई एक वीर नारी है।
  2. मित्र – कष्टों में हमारे साथ रहनेवाला ही सच्चा मित्र है।
  3. प्रेम – हमें आपस में प्रेम के साथ रहना चाहिए।

पर्याय शब्द

  1. नारी – स्त्री, अबला
  2. मित्र – दोस्त, सखा
  3. प्रेम – प्यार, इश्क

2. असफलता, विश्वास (एक – एक शब्द का विलोम शब्द लिखिए। वाक्य प्रयोग कीजिए।)
उ. विलोम शब्द

  1. असफलता × सफलता
  2. विश्वास × अविश्वास

वाक्य प्रयोग

  1. असफलता – असफलता पर दुख तथा सफलता पर आनंद का अनुभव करना हर एक का साधारण प्रवृत्ति है।
  2. विश्वास – सदा विश्वास के साथ जीना चाहिए। अविश्वास ही मरण है।

3. शंका, किला, सूचना (एक – एक शब्द का वचन बदलिए और वाक्य प्रयोग कीजिए।)
उत्तर:
वचन

  1. शंका – शंकाएँ
  2. किला – किले
  3. सूचना – सूचनाएँ

वाक्य प्रयोग

  1. शंका – अपनी शंकाओं का निवारण के लिए हम अपने अध्यापकों की सहायता लेनी चाहिए।
  2. किला – वीर शिवाजी ने कई किलों पर आक्रमण करके अपने अधीन में रखा।
  3. सूचना – परीक्षा लिखते समय प्रश्न – पत्र में दी सूचनाओं को एक – दो बार पढ़ना चाहिए।

आ) सूचना पढ़िए। उसके अनुसार कीजिए।

1. स्वराज्य, निराशा (उपसर्ग पहचानिए।)
उत्तर:
स्व, निर

2. वीरता, ऐतिहासिक (प्रत्यय पहचानिए।)
उत्तर:
ता, इक

इ) उदाहरण देखिए। उसके अनुसार वाक्य बदलिए।
उदाहरण : राजू पुस्तक पढ़ता है। – राजू से पुस्तक पढी जाती है।

1. लड़का भोजन करता है।
उत्तर:
लडके से भोजन किया जाता है।

2. रानी ने आज्ञा दी।
उत्तर:
रानी से आज्ञा दी गयी।

3. लक्ष्मीबाई ने जूही से कहा।
उत्तर:
लक्ष्मीबाई से जूही को कही गयी।

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ई) रेखांकित शब्दों के स्थान पर नीचे दिये गये एक – एक शब्द का प्रयोग कर वाक्य बनाइए।

कक्षा में एक लड़का आया। सब लड़के कक्षा में पहुंच चुके थे। लड़कों में अनुशासन बना था।
1. लड़की
2. छात्र
3. छात्रा
4. बालक
5. बालिका
उत्तर:
1. लड़की
कक्षा में एक लडकी आयी।
सब लडकियाँ कक्षा में पहुँच चुकी थी।
लड़कियों में अनुशासन बना था।

2. छात्र कक्षा में एक छात्र आया।
सब छात्र कक्षा में पहुँच चुके थे।
छात्रों में अनुशासन बना था।

3. छात्रा कक्षा में एक छात्रा आयी।
सब छात्राएँ कक्षा में पहुंच चुकी थी।
छात्राओं में अनुशासन बना था।

4. बालक
कक्षा में एक बालक आया था।
सब बालकें कक्षा में पहुंच चुके थे।
बालकों में अनुशासन बना था।

5. बालिका
कक्षा में एक बालिका आयी।
सब बालिकाएँ कक्षा में पहुंच चुकी थी ।
बालिकाओं में अनुशासन बना था ।

परियोजना कार्य

देशभक्ति से संबंधित किसी एकांकी का संकलन कर कक्षा में प्रदर्शन कीजिए।

उत्तर:
मंदिर की नींव
जयसिंहा रेड्डी ‘हरिजीत’

‘मंदिर की नींव’ एकांकी के लेखक श्री जयसिंहा रेड्डी जी हैं। इनका त्यकता के मोह से मुक्त, चुस्त और माधुर्य संवाद योजना लेखक की रंगमंचीय दृष्टि का प्रमाण है। वस्तुशिल्प और अभिनेय तीनों ‘दृष्टियों’ से उल्लेखनीय उनकी साहित्य साधना भारत और हरियाणा सरकारों द्वारा पुरस्कृत है।

‘मंदिर की नींव’ राष्ट्र- प्रेम और बलिदान का उपदेश देनेवाली एकांकी है। भारत की समग्र राष्ट्रीय भावना का विकास आधुनिक युग की विशेषता है। देश भक्ति भावना प्रस्तुत एकांकी का केन्द्रबिन्दु है। भारत पर चीन आक्रमण करता है। भीषण युद्ध चल रहा है। एक भारतीय युद्ध शिविर में जो घटनाएँ घटी हैं, वे ही घटनाएँ इस कहानी की कथावस्तु है। भारतीय सैनिकों के धैर्य, साहस, कर्तव्य निष्ठा और आत्म बलिदान के भावों को अभिव्यक्त करने में लेखक को बड़ी सफलता मिली है। प्रतिकूल परिस्थितियों में चीन के बुहसंख्याक सैनिकों के साथ – युद्ध करके आत्माहुति करने के लिए भारतीय वीर जवानों की सन्नद्धता भारतीय सेना की चारित्रिक दृढता को व्यक्त करती है। यही इस एकांकी की पृष्ठ भूमि है। इस एकांकी के प्रमुख पात्र मेजर और स्क्वैड्रान लीडर विक्टर हैं। कथानक में मेजर और विक्टर के देश प्रेम और बलिदान का निरूपण प्रस्तुत एकांकी में निरूपित किया गया है। इसमें इन दोनों के वैयक्तिक प्रेम का भी संकेत मिलता है। मेजर युद्ध भूमि में बलिवेदी पर चढा हुआ है तो उसकी सुन्दर पत्नी को अपनाने का प्रयत्न पडोसी कर रहा है।

विक्टर का प्रेम युद्ध के वातावरण में रंगीन रोमांस को भर देता है। विक्टर की प्रेमिका हसीना है। अगर इस युद्ध से लौट चले तो वह उस हसीना से विवाह करना चाहता है। आदर्श के साथ यथार्थ और कल्पना के अद्भुत सामंजस्य है यह एकांकी। सैनिकों के देश प्रेम में आत्म समर्पण की जो पवित्रता है वही इस भारत रूपी मंदिर की नींव है।

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पात्र
(मेजर, स्क्वैड्रान लीडर विक्टर, बख्शी, सन्तसिंह तथा अन्य सेनाधिकारी और तीन चीनी)

इंटों से बनाया गया एक फौजी – चौकी का कमरा। कमरे के बायीं ओर एक दरवाज़ा है। सामने की दीवार में बायी ओर एक खिड़की है जो खुली है और उसमें से आकाश के टिमटिमाते तारे दिखाई दे रहे हैं। खिड़की के दायी ओर एक खुला दरवाज़ा है। उसमें से अन्दर के कमरे का कुछ हिस्सा दिखाई दे रहा है। उस कमरे में मंद प्रकाश है। बाहर के कमरे की दीवार पर कुछ नकशे और पं. नेहरु तथा डॉ. राधाकृष्णन की तसवीरे हैं। कमरे के ठीक बीच में एक बड़ा टेबुल है। उसके चारों ओर कुर्सियाँ हैं। टेबुल पर दिया जल रहा है जो टेबुल पर पूर्ण रूप से और कमरे में क्षीण रूप से प्रकाश डाल रहा है। टेबुल पर दो – तीन टेलिफोन भी रखे हैं। कमरे के दायी ओर कोने में एक कद्दे – आदम रैक है। उसके पास एक स्टूल पर सुराही है।)

(पर्दा उठने के बाद टेबुल पर चारों ओर सेनाधिकारी बैठे नज़र आते हैं। सामने मेजर टेबुल पर बिछे नक्शे पर पेन्सिल से कुछ दिखाते हुए सेनाधिकारियों को आदेश दे रहा है। सभी सेनाधिकारी नक्शे की ओर ध्यानपूर्वक देख रहे हैं।)

मेजर :
दुश्मन ने इस चौकी पर तीसरी बार हमला बोल दिया है। शायद अब भी लडाई चल रही है। हमारे स्वचैड्रान लीडर विक्टर वहाँ गये हैं। उनके आने के बाद वहाँ की खबर मिल जायेगी। अब इधर खबर मिली है कि यहाँ भी चीनी हमला करनेवाले हैं। किस क्षण वे आयेंगे यह पता नहीं। मगर धोखे से आयेंगे यह निश्चित हैं। सब तैयार रहिए। चीनी फौज में मंचूरियन ट्रप्स ज्यादा है। और कोरिया के भी …..
(इतने में एक जवान बाहर से अंदर आकर सल्यूट करके एक चिट्ठी मेजर के हाथ में देता है।)

मेजर :
(चिट्ठी पढ़कर) भेज दो ! (जवान सल्यूट करके बाहर जाता है।) हमारे स्क्वैड्रान लीडर आये हैं। तीसरी बार भी चीनियों को पीछे हटना पड़ा। अब हमारी चौकी की बारी है। अब आप सब अपने पोजिशन्स पर खड़े रहिए। (सब खड़े हो जाते हैं और सल्यूट करते हैं। मेजर सल्यूट स्वीकार करता है। सब सेनाधिकारी बाहर चले जाते हैं। कुछ क्षणों की निस्तब्धता के बाद मेजर टेबुल की द्राज खींचकर उसमें से सिगरेट का डिब्बा निकालता है और उसमें से एक सिगरेट लेकर मुँह में लगाकर सुलगाता है। स्क्वैड्रान लीडर विक्टर अन्दर आता है और मेज के पास आकर सल्यूट करता है। मेजर भी सल्यूट करता है।)

मेजर :
(अपनी कुर्सी पर बैठता है और दूसरी कुर्सी की ओर इशारा करके) बैठो!

विक्टर :
(कुर्सी पर बैठता है। मेजर उसकी ओर सिगरेट का डिब्बा बढ़ाता है, मगर विक्टर उसकी ओर हाथ न बढ़ाकर मुस्कुराता है!)

मेजर :
ओह! मैं भूल गया था (सिगरेट का डिब्बा अपनी ओर वापस खींच लेता है।) कहो, क्या हाल है? तुम्हारा हेलिकाफ्टर ठीक तो है न?

विक्टर :
गोली लगाने से कुछ डॅमेज हुआ, मगर वैसे तो चलने में कोई तकलीफ नहीं है। कुछ लोगों को लुम्पु के अस्पताल में पहुँचाया। यदि आप इजाजत दे, तो फिर एक बार यहाँ हो आऊँगा।

मेजर :
और भी घायल है क्या ?

विक्टर :
जी नहीं। … मगर हो सकता है कि चौथी बार भी दुश्मन हमला बोल दे …..

मेजर :
अभी तो खबर नहीं। हाँ अब तो हमला इस चोकी पर होने वाला है।

विक्टर :
यहाँ ?

मेजर :
हाँ, खबर मिली है। हुक्म भी मिला है कि बारूद खत्म होने तक लडाई जारी रहे और बाद में पिछली चौकी में लोटे। मगर … मगर मैं चाहता हूँ कि मरूद खत्म होने तक क्या, मरते दम तक यही लडे और देखे कि यह लाल चीनी हमारी फौज पर कैसे बज करता है?…… अरे हाँ …. (मुस्कुराते हुए) अब कहाँ तक पहुँची है गोली?

विक्टर :
(मुस्कुराते हुए) अब तो दिल तक पहुँची है सर!

मेजर :
लेकिन तुम आपरेशन क्यों नहीं कराते? लुम्पु का अस्पताल ज्यादा दूर तो हैं नहीं।

विक्टर :
मगर सर, मैं नहीं चाहता कि लडाई यहाँ जारी रहे, खून बहता रहे, घायल कराहते रहें और मैं अस्पताल के पलंग पर मीठी दवा पीता लेटा रहूँ।

मेजर :
मगर कही ऐसा न हो कि …..

विक्टर :
कुछ नहीं होगा सर! (मुस्कुराते हुए) मेरा दिल इतना नरम है कि गोली उसकी ओर ताकने की हिम्मत भी नहीं रखती।

मेजर :
(ऊँचे स्वर में हँसते हुए) हाहाहाहः। …. ठीक है। नरम दिल से गोली भी डरती है। उसे तो संगदिल ही ज्यादा पसंद है और हम गोली की प्यार करने के लिए अपने में संगदिल रखते हैं। लेकिन तुम नरम दिल रखते हो तो मैं कहे देता हूँ – तुम मिलिटरी के लिए बेकार हो।

विक्टर :
क्यों सर ?

मेजर :
सिपाही की पहली सिफ़त है मजबूती, फिर सख्ती, बर्दाश्त और बहादुरी! इन सिफात से ही कोई सिपाही बनता है। …. खाने को मिले तो सुअर की तरह खाओं; नहीं मिले तो भूखे रहो, लेकिन मरो नहीं। गन हाथ में और दुश्मन सामने न हो तो सब कुछ भूल जाओ और गोलियाँ बरसाओ। कहीं गोली लगी तो मर जाओ। देश के शहीदों की सूची में तुम्हारा भी नाम लिखा जायेगा। और शहीदों का खून ही तो मंदिरों की नींव है जहाँ उनकी वंदगी होती है, पूजा होती है।

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विक्टर :
लेकिन सर, दिल को पत्थर बनाये बिना भी यह कर सकते हैं।

मेजर :
वही तुम्हारी गलती है विक्टर! एक – एक जवान की जिंदगी में झाँककर देखो, पता चलेगा। सूबेदार रामसिंह से पूछो – उसका घर – बार कर्ज में डुबा जा रहा है। जिस दिन वह काम आयेगा उसी दिन उसकी घर – ग्रिहस्ती भी तहसनहस हो जायेगी। गुप्त से पूछो – जब वह जायेगा तो उसकी जवान स्त्री का क्या होगा? और थापा, शमशेर, हूसेन ….! सबकी जिंदगियाँ बेशकीमत है। सबके अपने – अपने प्राब्लम्स हैं। मगर आज कैसे तैनात खड़े हैं – दिल को पत्थर बनाके | ….. (कुछ क्षण मौन) और मेरी हालत …. कुछ दिन पहले लिखी थी …. पड़ोस का आदमी मेरी ओर घूर घूरकर देखता है, बहाना करके बातें करने आता है। … (हँस कर) पगली है! भला वह खूबसूरत हो और . उसे निहारने कोई न आये, यह कही सुनने को मिला है? और जिसका पति लड़ाई में
गया हो …! जानते हो विक्टर, अगर मैं यहाँ से जिन्दा न लो- तो क्या होगा?

विक्टर :
(सर झुकाये) जी ….!

मेजर :
शायद तुम सोच नहीं सकते। मैं बताऊँगा, सुनो वह पडोसी दुनिया भर की हमदर्दी और तसल्ली के साथ उसके पास जायेगा। और जाता ही रहेगा। और आखिर एक दिन उसे अपना बनाके ही …. !

विक्टर :
(वेदना और रोष के साथ खड़े होकर) सर!

मेजर :
सिपाही की शादी नहीं करनी चाहिए। घर नहीं बसाना चाहिए। वह तो लडने के लिए पैदा होता है, समझे। ….. हसीन लडकियों को सपने में देखने के लिए नहीं। …..

विक्टर :
(असह्य वेदना से) बस कीजिए सर, मैं नहीं सुन सकता।

मेजर :
इतने ही में पस्त हो गये? … जानते हो विक्टर, मैं यह सब तुमसे क्यों कह रहा हूँ। …तुम्हारे प्रति मुझ में स्नेह है। और तुम शेरो शायरी, मजनूनवीसी करते हो। मैं चाहता हूँ कि तुम सिपहियों की जिन्दगी से परिचित हो जाओ, असलियत और हकीकतों को समझो और अपनी कलम से सिपाही – जीवन का महत्व समझाओ। हमारे देश में आज मिलिटरी – जीवन से जानकारी रखनेवाले लेखकों की निहायत कमी है।

विक्टर :
लेकिन सर, मैं तो लड़ने आया हूँ।

मेजर :
(हँसते हुए) मैं जानता हूँ कि तुम लड़ने आये हो। और तुम खूब लड़ो। … हाँ दस चीनियों । से कम नहीं चलेगा। … जानते हो, मैंने कितने चीनियों को मारा है? .. सत्रह! ….

विक्टर :
सत्रह? .. मेजर : हाँ, सत्रह! अगर जंगी – कार्रवाई की दृष्टि से चौकी नहीं बदलनी पडती तो तादाद और भी बढ़ती । खैर, सात तो फालतू हैं। तुम्हें चाहिए तो दे दूंगा। नहीं तो अदद पूरी करने के लिए मुझे और तीन चीनियों को ढूँढना पडेगा। … (हँसता है।) (विक्टर भी उसके साथ हँसता है।)

AP SSC 10th Class Hindi Solutions Chapter 8 स्वराज्य की नींव

मेजर :
अच्छा विक्टर, तुम्हारी हसीना की क्या खबर है? सपने में बराबर आती होगी। …. (मुस्कुराते हुए दूसरा सिगरेट सुलगाता है।)

विक्टर :
(झेंपकर) नहीं सर, सोता ही कहाँ? … और .. अब तो सपना देखें भी क्यों? इन चीनियों को खदेडने के बाद सीधे उसीके सामने खडा होकर देखूगा।

मेजर :
खड़े होकर देखते ही रहोगे या कुछ बातचीत भी …. ?

विक्टर :
(मुस्कुराकर) हाँ – हाँ बातें करूँगा, खूब करूँगा। शादी उसके साथ जो करनी है।

मेजर :
(ऊँचे स्वर में हँसकर) वाह ! वाह! अभी कह रहे थे कि सपना नहीं देखता। लेकिन मेरे सामने ही सपना देखने लगे और वह भी ऐसा सुहावना सपना। (दोनों हँसते हैं।)

मेजर :
हाँ, फर्ज करो कि उसकी दादी माँ को यह शादी मंजूर न हो, तो ….. .

विक्टर :
लेकिन अब दादी माँ के पास जाने की क्या ज़रूरत है। अब तो मेरा स्थान कुछ ऊँचा है। सुना है कि रेडियो और अखबारों में मेरे बारे में इशाअत की जा ही है। तो लड़ाई की खबरें सुनने वाले करोड़ों हिन्दुस्तानियों में वह भी एक क्यों न होगी ? और उसके दिल में मेरे लिए …..

मेजर :
हाँ – हाँ क्यों नहीं ! … और वह डांस भी जनाती है – क्लैसिकल डांस | हो सकता है, हमारी फौज के लिए डांस करके रुपये – गाने इकट्ठे किये हो। और हो सकता है, तुम्हारे लिए नया स्वेटर बुन रही हो। … और विक्टर, जब तुम लौटोगे तो …..

विक्टर :
(बीच में ही) सर, आप बार – बार मेरे लौटने की बात क्यों छेडते हैं?

मेजर :
(मुस्कुराते हुए) इसलिए कि तुम विजयी होकर लौटो और ….

विक्टर :
लेकिन सर, मेरे विजयी होने का मतलब है देश की विजय होना, चाहे मुझे यही मरना पड़े – इसी मिट्टी में, इसी बर्फ में, इसी आकाश में।

मेजर :
(गर्व से) शाबाश, मेरे शेर। मुझे तुमसे यही उम्मीद थी। मैं चाहता हूँ कि सब सिपाही इसी
तरह मज़बूत हो और तब देखे इस लाल चीनी की अपने असली रंग का पता कैसे चलेगा! …. (मूंछों पर ताव देते हुए) ल्हासा से भी भागना न पड़े तो … (एक जवान हाथ में चिट्ठी लिये तेज़ी से अन्दर आता है और सेल्यूट करके मेजर के
हाथ में देता है। मेजर चिट्ठी पढ़कर खड़ा होता है और विक्टर भी खड़ा होता है।)

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मेजर :
तुम्हें अभी जाना होगा, विक्टर! उस चौकी में शायद लड़ाई हो रही है। वहाँ से कांटक्ट नहीं मिल रहा है। कोई घायल हो तो वहाँ से ले जाना। गुड् लक्।

विक्टर :
थेक्यू सर! (सल्यूट करके तेजी से बाहर चला जाता है।)

मेजर :
संतसिंह, जरा बख्शी को भेजो!
(जवान सल्यूट करके चला जाता है।)
(मेजर डिब्बे से सिगरेट निकालकर मुँह में लगाकर सुलगाता है। दूर से समवेत स्वरों में कुछ गुनगुनाने की आवाज़ पास आती है। मेजर कुतूहल से खिड़की के पास जाकर देखता है। बख्शी अंदर आकर सल्यूट करता है। सभवेत स्वर और भी पास आता है और स्पष्ट सुनाई पड़ता है।
… बुद्धं शरण गच्छामि।
धम्मं शरणं गच्छामि।
संघं शरणं गच्छामि। …..)

मेजर :
इस वक्त ये लोग कहाँ से आ रहे हैं, बख्शी? .

बख्शी :
मालूम नहीं ‘सर। शायद मोम्पा लोग होंगे। सुना है कि वे सब बौद्ध है और हमारी खैरअंदेशी के लिए प्रार्थना भी कर रहे हैं।

मेजर :
(टेबुल के पास आकर, मुस्कुराते हुए) यही तो हम नहीं चाहते। मैं चाहता हूँ कि यहाँ हथियार और लड़ाई के सिवा कुछ न हो। लड़ाई और लड़ाकू से धर्म को दूर रहना चाहिए ! और ……. (इतने में ही बाहर से आवाज़ … ‘अरे ये तो दुश्मन हैं! होशियार … !’ उसकी बात समाप्त होने के पहले ही गोलियाँ चलाने की आवाज़ शुरु हो जाती है। मेजर और बख्शी । चौककर बूंदूकें हाथों में लेते हैं। बख्शी कमरे का दिया बुझाता है। एक जवान तेजी से ‘अन्दर सल्यूट करके …..)

जवान :
सर, दुश्मन बौद्धों के रूप में आया था। सूबेदार ने पहले ही देखा और हमको होशियार किया और खुद घायल हो गया।

मेजर :
अच्छा चलो।
(बख्शी और जवान, दोनों मेजर की पीछे बाहर जाते हैं। गोलियाँ चलाने की आवाज़ बढ़ती ही जाती हैं। कुछ क्षणों के बाद कमरे की खिड़की में एक टार्च दिखाई पडता है और वह धीरे – धीरे खिड़की के पास आता है। कमरे के अन्दर भी रोशनी पड़ती है। कोई चेहरा खिड़की में झाँकता हुआ दिखाई पड़ता है। फिर टार्च बुझ जाता है। और तीन व्यक्ति दरवाजे से कमरे के अंदर प्रवेश करते हैं। एक व्यक्ति टार्च जलाकर रोशनी से कमरे को टटोलता है। टार्च की और कमरे के अंदर की रोशनी में तीनों व्यक्तियों की आकृतियों का अभास मिलता है। उनके हाथों में मशीनगन् हैं और वेश-भूषा बौद्धों की है। टार्च वाला चीनी धीरे-धीरे अंदर के कमरे में चला जाता है इधर एक चीनी कोने का रैक खोलकर कुछ टटोलने लगता है और दूसरा टेबुल पर रखे टेलिफोन का चोंगा उठाकर कान से लगाता है। फिर नीचे रखकर, टेबुल पर बिछे नक्शे की लपेटने लगता है। बाहर गोलियाँ चलाने की आवाज़ ज़रा घटती है। अब दोनों चीनी दरवाजे की ओर पीठ किये टांड में ढूँढने लगते हैं। इतने में बाहर से बख्शी की आवाज आती है।)

बख्शी :
सर ! दुश्मन … अदर …… ! ………
(आवाज सुनते ही दोनों चीनी अपने हथियार संभालने की कोशिश करते हैं लेकिन बाहर से गोलियों की बौछार होकर दीनों वहीं ढरे हो जाते हैं। दरवाजे में पहले बंदूक की नाली दिखाई पड़ती है। फिर उसे हाथ में धामे हुए मेजर का प्रवेश, उसके पीछे बख्शी भी आता है। मेजर खिड़की के पास ही खडा होता है। उसके कंधे में गोली लगने के कारण खून बह रहा है। बख्शी तुरन्त चीनियों की लाशों के पास दौड़ता है और झुककर । उन्हें देखने जाता है। मेजर और आगे बढकर उसकी ओर देखता है।)

मेजर :
है कोई जिंदा ?)

बख्शी :
शायद नहीं सर! (लाशों पर झुकता है।)
(इतने में तीसरा चीनी अंदर के कमरे से बख्शी और मेजर की तरफ गोलियाँ बरसाते हुए दरवाजे की ओर भागता है। मेजर भी गोलियाँ बरसाता है। चीनी जख्मी होकर दरवाजे के बाहर गिर पड़ता है। केवल उसकी टाँगे दरवाजे पर दिखाई पड़ती है। अब मेजर के सीने में भी गोली लगी है और वहाँ से भी खून बह रहा है। मेजर लड़खड़ाते हुए बंदूक को आगे करके अंदर के कमरे में झाँककर देखता है और वहाँ किसी को न पाकर बख्शी के पास आता है।)

मेजर :
(उसे हिलाते हुए) बख्शी! … बख्शी….. ! । (बख्शी का शरीर लुढ़क पडता है। एक बार लंबी साँस लेकर फिर चीनियों के कपडे टटोलता है। कुछ कागज – पत्र हाथ लगते हैं। उन्हें लेकर टेबुल के पास आता है और उन्हें टेबुल पर रखकर कमरे का दिया जलाकर एक कुर्सी पर बैठ जाता है। सीने के दर्द से कराह उठता है। और हाथ से घाव की दवाता है। हाथ भी लाल हो जाता है। उसे पोंछते हुए चीनियों के कागज – पत्रों की ओर नजर दौड़ाता है और उन्हें पढ़ता है। फिर ‘ओह’ कहकर सीने पर हाथ रखकर पीछे की ओर सर टेकता है। बाहर गोलियाँ चलने की आवाज कम होती है। कुछ क्षणों के पश्चात् विक्टर का प्रवेश | मेजर के पास आकर सेल्यूट करता है। मेजर उसकी ओर देखकर मुस्काराता है। लेकिन दर्द से मुस्कुराहट एकाएक गायब हो जाती है। और कराह उठता है।)
(घबराकर उसके पास आकर) सर! आपको गोली लगी! … है, सीने में …. !
हाँ, सीने में। दिल के पास! मगर दिल में घुस जायेगी। संगदिल जो है!
(दरवाजे की ओर मुड़कर) जमादार! जमादार ! …
नहीं विक्टर नहीं! किसी को तकलीफ न दो। सब तैनात वहीं खडे रहें । …… हाँ, वहाँ की क्या खबर है ?

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विक्टर :
अच्छी खबर नहीं है सर ! (सर झुका लेता है) उस चौकी पर दुश्मनों ने कब्जा कर लिया है और मेरा हेलीकाप्टर वहाँ उतर ही न सका। हमारे जवान पीछे की झील पार करके दूर चले जा रहे थे। (कोनें की ओर जाकर टाँड की दराज खींचकर वहाँ से प्रथमोपचार चीजें लेकर मेजर की मरहमपट्टी करने लगता है।) उन सबके उस पार चले जाने तक एक अकेले जवान ने चीनियों को रोक रखा था। उसे बचाने की मैं ने बहुत कोशिश की। लेकिन कामयाब न रहा … | और मुझे लौट जाना पड़ा। मगर इधर तो …..

मेजर :
तुम्हें एक काम सौंपता हूँ विक्टर! … अब कुछ ही देर में चीनियों की फौज बड़ी तदाद में आयेगी। शायद हमें भी चौकी खाली करनी पडेगी। ऊपर से हुक्म है कि बारूद खत्म होते ही चौकी खाली करे। मगर मैं चाहता हूँ कि सब जवान मरते दम तक लड़ते रहें।घायल होकर, लँगडा होकर पेंशन पाने के बदले लड़ते – लड़ते – लड़ते मर जाना ही सिपाही के लिए मुनासिब है। …. लेकिन … लेकिन …. हम इस तरह चौकियाँ खाली क्यों कर रहे हैं … क्यों कर रहे हैं? … यह कैसी मजबूरी है! आखिर ऐसा क्यों हुआ? ….. ओह!
(बाहर गोलियाँ, मोर्टार आदि चलाने की आवाज़ शुरु होती है।)

विक्टर :
शायद आ गये ! …. एक के बाद एक हमला करते रहेंगे ताकि हम, सुस्ता न लें। यही इन चीनियों की स्ट्रेटजी है। …. हाँ, विक्टर ! यहाँ की कोई चीज दुश्मन के हाथ नहीं लगनी चाहिए। तुम सब जला दो और जल्दी पिछली चौकी को इसकी खबर दे दो। : मगर सर ! आप ….. ?

मेजर :
मेरी चिंता मत करो। चौकी की चिंता करो। जवानों की चिंता करो। देश की चिंता करो।

विक्टर :
हाँ सर। आपको हेलिकाप्टर में …..

मेजर :
हेलिकाप्टर लाशों को लादने के लिए नहीं है विक्टर! तुम घायल जवानों को ले जाओ।मैं इसी मिट्टी में, इसी बर्फ में मरना चाहता हूँ। …. आह …. !

विक्टर :
सर! (पास आता है और सीने के घाव पर हाथ रखता है।) मैं आपको लुम्पु के अस्पताल में पहुँचाऊँगा। आप वहाँ ठीक हो जायेंगे।

मेजर :
(मुस्कुराने की चेष्टा करते हुए) अधिक आशावादी होना नहीं विक्टर ! …..

विक्टर :
सर …… ?

मेजर :
मैं चाहता हूँ कि तुम खूब लड़ो, विजयी हो और अच्छी पाओ! सुखी रहो। और उस हसीना के साथ तुम्हारी शादी और … और … (ध्वनि गद्गद् हो जाती है)… और हो सके एक मेरा काम करो ….I)

विक्टर :
(दुःख और कुतूहल से उसकी ओर देखता है।)

मेजर :
हाँ, हो सके तो । हो सके तो …. विक्टर : कहिए, सर !

मेजर :
हो सके तो एक बार मेरे घर जाना! उसे पड़ोसी से … (ध्वनि गद्गद् हो जाती है।)

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विक्टर :
(आर्द्र होकर) सर ! यह मेरा पहला कर्तव्य होगा। मेजर : विक्टर, तुम हनिमून के लिए यहीं आना! ….. और मुझे खुशी है कि मैं अपनी ही मिट्टी पर मर रहा हूँ। इन चीनियों की तरह परदेश में नहीं मर रहा हूँ। विक्टर … !

विक्टर :
सर ….. !

मेजर :
अपनी पीढी को यह मालूम हो कि उनके कल के लिए हमने अपने आज की किस तरह कुर्बानी दी। … (लंबी साँस लेकर) एक सिगरेट दो विक्टर। (विक्टर एक सिगरेट उसके मुँह में रखता है और टेबुल से लाईटर लेकर जलाकर सिगरेट के पास ले जाता है। लेकिन आग बुझ जाती है और मेजर के मुँह से सिगरेट नीचे गिर जाता है। उसकी आँखें मुंद गयी है।)

विक्टर : (आर्द्र कंठ से) सर ! … सर! (अपनी टोपी हाथ में लेकर कुछ क्षणों के लिए सर झुकाकर शान्त खडा रहता है।) (बाहर गोलियाँ चलने की आवाज़ तेज होती है। विक्टर पहले बख्शी की लाश को बाहर ले जाता है और मेजर की लाश को भी बाहर ले जाता है। फिर अंदर आकर सब कागज – पत्रों को अपने नैपसैक में भरकर अंदर के कमरे में चला जाता है। वहाँ से लौटकर पं.नेहरु. और डॉ. राधाकृष्णन् की तस्वीरें लेकर तेज़ी से बाहर चला जाता है। अंदर के कमरे में कुछ धधकती – सी चीज नजर आती है।)

स्वराज्य की नींव Summary in English

This lesson is about a one – act play. The characters in the play are Lakshmibai, Juhi, Mundar, Raghunatharao and Tatya Tope.

Rani Lakshmibai of Jhansi was a great patriot. She had war like qualities. She was a clever horse rider and a clever archer. Juhi and Mundar were her maids. Tatya was the chief leader in the kingdom of Jhansi. Raghunatharao was one of the chiefs.

At the outset, battlefield was seen on the stage. An army camp was arranged near the battlefield. Lakshmibai and her maid Juhi donned warrior’s clothes. They were in the tent belonging to Lakshmibai. They were discussing about the war with the British. The British army invaded Jhansi and captured it. Even though the forces of Lakshmibai fought bravely, they could not succeed before the mighty army of the British.

Lakshmibai was upset with this and shared her distress and agony with Juhi. She said, “Queen ! you read the Gita. Why are you desperate ? She comforted Lakshmibai saying not to lose heart. Lakshmibai remembered the words of Baba Gangadas. “So long the untouchability and the differences, between the rich and the poor are not eradicated, and so long the people do not renounce the inclination towards luxuries and so long we do not engage ourselves in the service of mankind, we do not get independence. It can be attained only through service penance and self – sacrifice”.

Lakshmibai was in depression for their soldiers were indisciplined and inexperienced though they were being trained under the leadership of the chief leader like Tatya. Juhi opined that everybody on their side immersed himself in luxuries. Then Mundar, Lakshmibai’s another maid, came there. She told them that Rao saheb, Banda Nawab, Tatya alone immersed themselves in comforts.

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Juhi said that she was ready to counter attack the enemy. Mundar also came forward and joined her hands. Then they heard the sounds caused by the explosion of cannons from a long distance. Lakshmibai ordered Juhi to bring Tatya into her presence if her was seen. She was about to go. Then Raghunatharao, one of the chiefs came there and informed Lakshmibai that General Sir Hugh Rose’s army defeated the army of Peshwa in Murar. Lakshmibai commanded him to keep his forces ready. He said that General Rose could not capture the fort of Gwalior. Lakshmibai hoped that Rose could never capture that fort. Raghunatharao said that he would give orders to the marching of soliders. He had come there to inform that matter.

Then Sardar Tayta entered there. Lakshmibai said that she had hopes on him. She questioned him why all that was happening even there were warriors like him on their side. She asked him sarcastically if he had come there losing his way. He was offended and said that he was ready to follow whatever she told him to do. He determined to lead his army and relieve Jhansi. Juhi commended that Tatya was a loyal leader. Then Lakshmibai said they needed patriots who sacrifice everything for their country in that moment. She told him to discard love and affection, and encouraged him to fight for independence.

He showed his readiness for the battle. She told him that in case if they didn’t get victory in the battle, he would take their army and the ammunition from the enemy. She was of opinion that it was her life’s final battle. She had no concern whatever they could get victory or defeat.

Tatya praised her valour and went away. Lakshmibai got ready to go to the battlefield. She said that they would get independence or lay the foundation stones for it.

With this the curtain falls and the play ends.

स्वराज्य की नींव Summary in Telugu

పాత్రలు : (లక్ష్మీబాయి, జూహీ, ముందర్, రఘునాథరావు, తాత్యా, సేనానాయక్)
(స్టేజీ పైన యుద్ధభూమి దృశ్యం గోచరించుచున్నది. సైనిక శిబిరం యుద్ధభూమికి సమీపంలో ఏర్పాటు చేయబడి యున్నది. మహారాణి లక్ష్మీబాయికి చెందిన ఒక గుడారం కన్పించుచున్నది. తెర తెరవగానే మహారాణి లక్ష్మీబాయి తన సఖి (చెలికత్తె / స్నేహితురాలు) జూహీతో ఉత్తేజిత స్థితిలో స్టేజీ పైకి వస్తుంది. ఇరువురూ ఎర్రని దుస్తులు ధరించిన యుద్ధ సైనికుల వేషంలో ఉండిరి.

లక్ష్మీబాయి :
నేను చూస్తూ… చూస్తూ ఉండగానే ఎంతలో ఎంత మార్పు జరిగింది జూహీ? ఝాన్సీ, కలాపీ, గ్వాలియర్ ఎక్కడికి వెళ్ళాయి? కానీ గమ్యం దగ్గరకు వస్తున్నట్లు వచ్చి దూరం వెళ్ళిపోతోంది. స్వరాజ్యం (స్వాతంత్ర్యం) వస్తున్నట్లు కనిపిస్తోంది కానీ రెండోక్షణంలోనే హిమాలయ పర్వతాలు అడ్డగిస్తున్నాయి. దానిని దాటితే మహాసాగరంలోని భయంకరమైన అలలు చెంపదెబ్బ కొడుతున్నాయి. దానినుండి పోరాడి తప్పించుకుంటే నావికులు నిద్రిస్తున్నారు. చూడు జూహీ, ఆ సమాంతర ప్రదేశాన్ని చూడు, ఎలాంటి మంటలు పైకి లేస్తున్నాయి. ఆకాశమంతా నల్లని మేఘాలు కమ్ముకొని ఉన్నాయి. ప్రళయం రాబోతోంది. కానీ రావుసాహెబ్ రక్తమండల ఛాయ (నీడ) లో భోగవిలాసాలతో విశ్రాంతి తీసుకుంటున్నాడు. (ఆవేశంతో ఊగి ఊగి మౌనాన్ని దాలుస్తుంది. జూహీ ఏదో చెప్పాలని నోరు తెరుస్తోంది. కానీ మహారాణి మళ్ళీ మాట్లాడుతుంది) జూహీ, జూహీ, నేను నా ఝాన్సీని ఇవ్వనని ప్రతిజ్ఞ చేశాను. కానీ ఝాన్సీ చేయి జారిపోయింది జూహీ. (మరలా వెంటనే ఉత్తేజంతో) కాదు, కాదు ఝాన్సీ నా చేతుల నుండి చేజారి పోలేదు. నేను నా ఝాన్సీని ఇవ్వను. నేను ఒంటరిగా ఉన్నాను. అయితే ఏమి? నేను ఒంటరిగానే ఝాన్సీని పొంది తీరతాను.

జూహీ :
ఎవరన్నారు మహారాణీ? మీరు ఒంటరివారని?
మీరు గీత చదువుతారు కదా! అయినా ఎందుకింత నిరాశ?

లక్ష్మీబాయి :
నేను నిరాశగా ఏమీ లేను. నాకు తెలుసు. నేను ఝాన్సీని పొందే తీరతాను. నీకు తెలుసు కదా! ఆ రోజున బాబా గంగాదాస్ నాతో ఏమి చెప్పాడో? “ఎప్పటి వరకు మన సమాజంలో అస్పృశ్యత, ఉన్నవారు – లేనివారు (పెద్ద-చిన్న) అనే భేదాలు తొలిగిపోవో ఎప్పటి వరకు విలాస ప్రియత్వం వదలి జన సేవకులం అవ్వమో అప్పటి వరకు మనకు స్వరాజ్యం రాదు, లభించదు. అని కేవలం సేవ, తపస్సు, ఆత్మార్పణంతోనే వస్తుంది.”

జూహీ :
కానీ మహారాణి, ఆయన ఇంకా ‘స్వరాజ్య ప్రాప్తికి మించి స్వరాజ్య స్థాపన కోసం భూమి సిద్ధం కావాలి, స్వరాజ్యపు పునాది రాయిని ఏర్పాటు చేయాలి. విజయం, అపజయం ఈ రెండూ దైవాధీనం. కానీ స్వరాజ్యప్రాప్తి కోసం పునాది రాయిని ఏర్పాటు చేస్తే ఎవరు ఆపగలరు? అది మన హక్కు” – అని కూడా చెప్పారు కదా!

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లక్ష్మీబాయి :
నా ప్రియమైన కర్నల్ శాబాష్ , మీతో నేను ఆశించే ఆశ ఇదే. ఏ స్వరాజ్యపు పునాది రాయిని మీరు ఏర్పాటు చేయడానికి వెళుతున్నారో, అది నిశ్చయంగా గొప్పది అవుతోంది. అది నా జీవిత కాలంలో లభిస్తుందా, లభించదా అనే దిగులు, బాధ నాకు లేదు. కానీ నా దుఃఖానికి, దిగులుకు కారణమేమిటంటే మన వద్ద తాత్యా లాంటి సేనాధిపతి ఉన్నాడు. కానీ మన సైన్యంలో క్రమశిక్షణ లేదు. మన దగ్గర గ్వాలియర్ కోట ఉంది. కానీ మనం, ఏమీ చేయలేకపోతున్నాం. ఎందుకని? నీకు తెలుసా జూహీ ఎందుకో ?

జూహీ :
తెలుగు మహారాణి మనం విలాసాలలో మునిగిపోయాం .
(అప్పుడే నవ్వుతూ ముందర్ ప్రవేశిస్తుంది.)

ముందర్ :
మనం విలాసాలలో మునిగిపోయామని ఎవరన్నారు?
విలాసాలలో మునిగింది రావ్ సాహెబ్, బాందా నవాబు సేనాపతి తాత్యా.

జూహీ :
(ఒక్కసారిగా) కాదు, ముందర్. సేనాపతి కాదు.

ముందర్ :
(నవ్వుతుంది) ఓహ్, అర్థమయ్యింది. నీవు ఆయన వైపే ఉంటావు, ఆయన్నే సమర్థిస్తావు.

జూహీ :
(దృఢ స్వరంతో) నేనేమి ఆయన వైపు (పక్షం) ఉండను, కానీ ఏది యదార్థమో దాన్ని సమర్థిస్తా, దాన్ని దాచను. ఆయన (తాత్యా) సర్దార్ రావ్ సాహెబ్ ను తన సర్వస్వంగా భావిస్తారు. దేశం కోసం నేను సర్దారను (తాత్యాను) కూడా వ్యతిరేకిస్తాను. వ్యతిరేకించాను కూడా.

ముందర్ :
(పక పకా నవ్వి) జూహీ నీకు కోపం వచ్చిందా? నా ఉద్దేశ్యం అది కాదు. నేను కేవలం ఏమంటున్నానంటే నీవు నీ స్వామిగా అతనిని (తాత్యాని) అంగీకరించావు. అతడిని (తాత్యా) ఎందుకు ఆపలేకపోతున్నావ్?

లక్ష్మీబాయి :
జూహీ అతనిని ముందర్ ఆపింది. నాకు తెలుసు. రావా సాహెబ్ చెప్పినట్లు తనను (జూహీ) నాట్యం చేయమని తాత్యా చెపితే జూహీ దాన్ని తిరస్కరించింది. ధిక్కరించింది.

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జూహీ :
అవును మహారాణీ, నేను స్వరాజ్యం కోసం నాట్యం చేస్తా, దాదాపు నాట్యం చేస్తూనే ఉన్నా. కానీ విలాసంలో మునిగితేలడానికి నా కళను ఎవరి మెడకో ఉరితాడు కానీయను. నాకు అలా ఎవరైతే చేయమని చెబుతారో వారికి ఎదురుదెబ్బ కొట్టగలను.

లక్ష్మీబాయి :
(దీర్ఘ నిట్టూర్పు వదలి) ఎదురుదెబ్బ కొట్టలేవు జూహీ. ఆ నొప్పే మనల్ని గుచ్చుకునేలా చేస్తోంది. ఒకవేళ మనం ఎదురుదెబ్బ కొట్టి వాళ్ళ మదాన్ని అణచినట్లయితే ఇంకా మాటలేమున్నాయి?

జూహీ :
మహారాణి! ఇతరుల మాటలు నాకు అర్థం కావు. నన్ను ఆజ్ఞాపించండి. నేను ఎదురు దాడికి సిద్ధంగా ఉన్నాను.

ముందర్ : నేను కూడా సిద్ధంగా ఉన్నాను.
పదండి మనమందరం వెళ్ళి వారి నిద్రను భంగపరుద్దాం. (వారి పక్కలో బల్లెంలా అవుదాం.)

లక్ష్మీబాయి :
లేదు ముందర్, లేదు. మనం వారికి నిద్రా భంగాన్ని కల్గించలేం. ఇప్పుడు శత్రువుల ఎదురుదెబ్బలే వారి నిద్రను భంగపరిచి మేల్కొనేలా చేస్తాయి.

జూహీ :
శత్రువుల ఎదురుదెబ్బలా? మీరేమి అంటున్నారు?

లక్ష్మీబాయి :
అవును జూహీ, శత్రువుల ఎదురుదెబ్బలు అవిశ్వాసపు కందకాన్ని ఇంకా వెడల్పు చేస్తాయి. నీకు తెలియదా! మనం ఏ దృష్టితో ఒకరినొకరు చూసుకుంటామో? ఏమి ఇలాంటి స్థితిలో నేనేమైనా చెప్పినట్లయితే అనుమానాల మేఘాలు’ ఇంకా దట్టం కావా?

ముందర్ : అవును, మహారాణి నిజమే చెబుతున్నారు. అనుమానాలు, అవిశ్వాసాన్ని పెంపొందిస్తాయి. ఆ అవిశ్వాసం ద్వారా ఉత్పన్నమైన నిరాశను దూరం చేయాలంటే గజ్జెల సవ్వడి ఇంకా ఘల్లుమనాలి. శ్రీఖండం (పానీయం) లడ్డూలపై ప్రాణం వదిలే బ్రాహ్మణుల ఆశీర్వాద స్వరాలు ఇంకా వేగం పుంజుకోవాలి. (ఒక్కసారిగా ఎక్కడో దూరాన ఫిరంగులు పేలుతున్న (మ్రోగుతున్న) శబ్దాలు విన్పిస్తాయి.)

లక్ష్మీబాయి :
జూహీ నీవు తాత్యాను వెతికినట్లయితే (నీకు తాత్యా కన్పించినట్లయితే) వెంటనే అతనిని ఇక్కడకు రమ్మని చెప్పు.

జూహీ :
ఎందుకు వెతకను? మీ ఆజ్ఞ అయితే అతనిని పాతాళంలో ఉన్నా లాక్కుని వస్తాను. (వెళ్ళడానికి సిద్ధపడుతుంది. అప్పుడే రఘునాథరావు వేగంగా లోపలికి వస్తాడు.)

రఘునాథరావు :
మహారాణీ, మీరు విన్నారా?

లక్ష్మీబాయి :
ఏమిటది రఘునాథ్?

రఘునాథ్ రావ్ :
మహారాణి, జనరల్ రోజ్ సైన్యం మురార్ లో పేశ్వా సైన్యాన్ని ఓడించింది.

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జూహీ :
(వణికిపోతూ) ఏమిటి పేశ్వా సైన్యం ఓడిపోయిందా?

లక్ష్మీబాయి :
పేర్వా సైన్యం ఓడిపోయింది. మంచి పనే జరిగింది. ఇప్పుడు పేళ్వి కళ్ళు తెరచుకుంటాయి. రఘునాథ్ మీ సైన్యాన్ని సిద్ధంగా ఉండమని ఆజ్ఞాపించు. రోజ్ గ్వాలియర్ కోటను స్వాధీనం చేసుకోలేడు.

రఘునాథ్ :
నాకు తెలుసు. అతడు ఎప్పటికీ స్వాధీనం చేసుకోలేడు. నేను ఇప్పుడే సైనికులకు మార్చింగ్ చేయడానికి ఆదేశాలిస్తాను. కేవలం మీకు సూచన ఇవ్వడానికే ఇక్కడకు వచ్చాను. (వెళ్ళిపోతాడు)

లక్ష్మీబాయి :
జూహీ, నీవు కూడా వెళ్ళు. (ఒకసారి బయటకు చూసి) ఆగు. బహుశా సేనాపతి తాత్యా ఇటే వస్తున్నాడు.

జూహీ :
(బయటకు చూసి) అవును ఆయన సర్దార్ తాత్యానే… (సర్దార్ తాత్యా ప్రవేశిస్తాడు. )

లక్ష్మీబాయి :
చెప్పండి, సర్దార్ తాత్యా, ఈ రోజు మీరు ఇలా దారి తప్పి వచ్చినట్లున్నారే?

తాత్యా :
మహారాణీ, నేను ఎవరికైనా సర్దారను కావచ్చు కానీ మీకు మాత్రము సేవకుణ్ణి.

లక్ష్మీబాయి :
(వ్యంగ్యంగా) ఇంత గొప్ప సేనాపతి. ఒక స్త్రీ ముందు తలవంచుకోవటానికి సిగ్గుగా లేదు? సరే. ఆ విషయం వదిలివేయి. అది నీ వినయం అనుకుంటా. కానీ ఆ ఫిరంగుల శబ్దము ఎందుకు, ఎక్కడ నుండి వినిపిస్తున్నది? ఏమి ఉత్సవం జరుపుకుంటున్నారు? బహుశా బట్రాజులకు జాగీరాలు పంపకం ఇంకా అవ్వలేదా?

తాత్యా :
మహారాణీ, మీకు మమ్మల్ని సిగ్గుపడేలా చేసే అధికారం ఉంది. మేము దానికి యోగ్యులమే. కానీ ఏదైతే జరుగుతూ ఉందో, అది మీకు తెలుసు కూడా.

లక్ష్మీబాయి :
బహుశా బ్రాహ్మణుల భోజనం సందర్భంగా ఈ ఫిరంగులు పేల్చుతున్నట్లున్నారు. శ్రీఖండం మరియు లడ్డూల కోసం నెయ్యి, పంచదారలకు ఏమీ కొరత లేదు కదా!

జూహీ :
మహారాణీ, ఈసారికి ఇతనిని క్షమించండి.

తాత్యా :
(విసిగిపోయి) మహారాణీ మీరు ఈ విధంగా ఎప్పటి వరకు నన్ను విమర్శిస్తుంటారు?

లక్ష్మీబాయి :
అయితే, నేను కూడా సిద్ధమే. తాత్యా నీ మీద నాకు ఎన్నో ఆశలున్నాయి. నీవు ఉండి కూడా ఇలా ఎందుకు జరుగుతోంది ?

జూహీ :
మహారాణీ, ఈయన స్వామి భక్తుడు.

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లక్ష్మీబాయి :
కానీ, ఈ రోజు మనకు కావలసినది దేశభక్తులు. జాగ్రత్త. సరే ఇప్పటికి నష్టపోయింది ఏమీ లేదు. ఇప్పుడు కూడా మనం చాలానే చేయవచ్చు.

తాత్యా :
అందుకే కదా నేనే వచ్చింది మహారాణీ! మీరేది చెబితే నేను అదే చేస్తా. మీరు ఏ ప్రణాళికలు సిద్ధం చేస్తే నేను వాటినే అనుసరిస్తా.

లక్ష్మీబాయి :
సరే, వెళ్ళు కత్తులను సవరించుకో. గజ్జెల సవ్వడుల స్థానంలో ఫిరంగుల గర్జనను వినిపించాలి. మరచిపో అభిమానం – అనురాగాలను. గుర్తుంచుకో మనం స్వరాజ్యాన్ని పొందాలి. మనం రణ భూమిలో చావుతో…

తాత్యా :
మహారాణీ, తమకు జయం కలుగుగాక. నేను యుద్ధానికి సిద్ధపడి వచ్చాను.

లక్ష్మీబాయి :
తెలుసు. కానీ సేనాపతి, ఈసారి మనకు దుర్భాగ్యం దాపురించి విజయం లభించకపోయినట్లయితే ఒక్కటి గుర్తుంచుకో నీవు మన సైన్యాన్ని, యుద్ధ సామగ్రిని రెండింటిని చుట్టుముట్టిన శత్రువుల నుండి తీసుకుని వెళ్ళిపోవాలి.

తాత్యా :
అలాగే మహారాణి.

లక్ష్మీబాయి :
తాత్యా, ఇది నా జీవిత అంతిమ యుద్ధమని నా మనస్సు చెబుతోంది. విజయమో, అపజయమో నాకు ఏ విషయానికి దిగులు లేదు.
మన వీరత్వానికి కళంకం రాకూడదనే నా దిగులు, ఆలోచన.

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తాత్యా :
మహారాణీ వీరత్వం మిమ్మల్ని పొంది ధన్యమైనది. మీరుండగా కళంకం మన ఛాయ (నీడ) ను కూడా తాకలేదు. ఆజ్ఞాపించండి. ప్రణామములు.

లక్ష్మీబాయి :
నమస్కారాలు తాత్యా, నేను సరాసరి యుద్ధ భూమికి వెళ్ళుతున్నాను. ఆలస్యం చేయకు. (తాత్యా వెళ్ళిపోతాడు.)

ముందర్ :
మహారాణీ, నేను ఈ రోజంతా మీతోనే ఉంటాను.

జూహీ :
నేను ఫిరంగిశాలను పర్యవేక్షిస్తాను.

లక్ష్మీబాయి :
మనందరం కలిసి స్వరాజ్యాన్ని పొందుదాము లేదంటే స్వరాజ్య పునాది రాళ్ళను ఏర్పాటు చేద్దాం.
(తెర పడుతుంది. నాటకం సమాప్తమగుతుంది. )

अभिव्यक्ति-सृजनात्मकता

2 Marks Questions and Answers

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो या तीन वाक्यों में लिखिए।

प्रश्न 1.
लक्ष्मीबाई के अनुसार स्वाराज्य की स्थापना कैसे हो सकती हैं?
उत्तर:
लक्ष्मीबाई के अनुसार स्वराज्य की स्थापना के लिए विलासिता को छोड़ देना चाहिए।
छुआछूत और ऊँच – नीच के भेदों को भूलकर जनसेवक बनना है।
* सेवा, तपस्या और बलिदान से स्वराज्य पा सकते हैं।
निराशा छोड़कर आगे बढ़ना चाहिए। अपने को समर्पण करना चाहिए।

प्रश्न 2.
महारानी लक्ष्मीबाई को किस बात का दुःख था ?
उत्तर:

  • महारानी लक्ष्मीबाई देश की आजादी के लिए लड़ रही थी।
  • सेना में अनुशासन हीनता, विलास प्रियता आदि देखकर वह चिंतित थी।
  • स्वामी भक्ति का लोप, ऊँच – नीच का भेद – भाव समाज में व्याप्त था।
  • इस कारणों से महारानी लक्ष्मीबाई दुःखी थी।

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प्रश्न 3.
पाठ के आधार पर “स्वराज्य की नींव” का अर्थ बताइये।
उत्तर:
स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए लड़ना, अपने आप को तैयार रखना ही स्वराज्य की नींव रखना है। रानी लक्षमीबाई ने इस के लिए प्रयास किया था। अनुशासन युक्त सेना तैयार करने का प्रयास किया। समाज में छुआ – छूत और ऊँच नीच का भेद मिटाने की कोशिश की। विलास प्रियता को छोड़कर देश सेवा में निमग्न हो गयी।

प्रश्न 4.
स्वराज्य की नींव का अर्थ अपने शब्दों में बताइए ।
उत्तर:
स्वराज्य का नींव का अर्थ भारत को आज़ाद कराना है। उस समय भारत अँग्रेज़ों का गुलाम था। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया। अतः उन्होंने स्वराज्य प्राप्त करने के युद्ध की नींव रखी। स्वराज्य का मतलब है स्वयं द्वारा स्वयं के नियम बनाकर उसके अनुसार काम करना।

प्रश्न 5.
लक्ष्मीबाई की दृष्टि में मातृभूमि का क्या महत्व है?
उत्तर:
लक्ष्मीबाई मातृभूमि को माता के समान मानती हैं। वे मातृभूमि को अंग्रेजों के हाथों अपवित्र नहीं होने देना चाहतीं। वे भारत माता को गुलाम होते नहीं देख सकती। वे यहाँ के समाज में फैले भेदभाव को भी दूर करना चाहती हैं। इसी कारण वे मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए लड़ते हुए अपने प्राण त्याग दिये।

प्रश्न 6.
बाबा गंगादास कौन थे ? उन्होंने लक्ष्मीबाई से क्या कहा था?
उत्तर:
बाबा गंगादास रानी लक्ष्मीबाई के गुरु थे। उन्होंने उनसे कहा था कि जब तक हमारे समाज में छुआछूत और ऊँच-नीच का भेद नहीं मिट जाता, जब तक हम विलासप्रियता को छोड़कर जनसेवक नहीं बन जाते, तब तक स्वराज्य नहीं मिल सकता। वह मिल सकता है केवल सेवा, तपस्या और बलिदान से।

प्रश्न 7.
लक्ष्मीबाई को कौन सी चिंता सताती थी?
उत्तर:
लक्ष्मीबाई को चिंता सता रही थी कि कहीं उनकी वीरता कलंकित न होने पाये। उन्हें पता था कि वह युद्ध में जीत नहीं पाएँगी। लेकिन वह मरकर भी स्वराज्य की नींव का पत्थर बनना चाहती थीं। लेकिन उनके साथी रावसाहब इत्यादि विलासिता में डूबे थे। रावसाहब के सेनापति तात्या भी उनका साथ दे रहे थे। इस कारण रानी को चिंता थी कि उनकी वीरता कहीं कलंकित न होने पाये।

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प्रश्न 8.
तात्या कौन थे, उनसे लक्ष्मीबाई क्यों नाराज़ थीं?
उत्तर:
तात्या लक्ष्मीबाई की सेना के सेनापति थे। लेकिन वे रावसाहब को अपना स्वामी मानते थे। राव साहब युद्ध की घड़ी में भी विलासिता में डूबे थे। तात्या भी उनका साथ दे रहे थे। इसलिए लक्ष्मीबाई तात्या से नाराज थीं।

प्रश्न 9.
लक्ष्मीबाई की सहेलियाँ कौन थीं? उनके बारे में दो वाक्य लिखिए ।
उत्तर:
लक्ष्मीबाई की सहेलियाँ जूही और मुंदर थीं। वे भी उनके साथ युद्ध करने आई थीं। वे बहादुर थीं। वे रानी लक्ष्मीबाई का साहस बढ़ा रही थीं। जूही एक नृत्यांगना थी। वह तात्या से प्रेम करती थी। मुंदर एक वीरांगना थी। वह भी निडर होकर अंग्रेज़ों से लोहा लेने आई थी।

प्रश्न 10.
बाबा गंगादास के अनुसार स्वराज्य की प्राप्ति कब होगी?
उत्तर:
बाबा गंगादास का कहना था कि स्वराज्य की प्राप्ति वास्तव में तब होगी जब हमारे समाज से भेदभाव मिट जायेगा। उन्होंने कहा था कि जब तक हमारे समाज में छुआछूत और ऊँच-नीच का भेद नहीं मिट जाता, जब तक हम विलासप्रियता को छोड़कर जनसेवक नहीं बन जाते, तब तक स्वराज्य नहीं मिल सकता। वह मिल सकता है केवल सेवा, तपस्या और बलिदान से।

प्रश्न 11.
विलासिता में कौन डूबे हुए थे?
उत्तर:
विलासिता में राव साहब, बाँदा के नवाब और तात्या डूबे हुए थे। युद्धभूमि की चिंता छोड़कर वे नृत्य और मदिरा का आनंद ले रहे थे। इसी कारण रानी लक्ष्मीबाई उनसे नाराज़ थीं।

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प्रश्न 12.
लक्ष्मीबाई और उनके साथी स्वराज्य की नींव क्यों बनना चाहती थीं?
उत्तर:
लक्ष्मीबाई और उनकी साथी मातृभूमि को माता के समान मानती थीं। वे मातृभूमि को अंग्रेजों के हाथों अपवित्र नहीं होने देना चाहती थीं। वे भारत माता को गुलाम होते नहीं देख सकती थीं। उन्हें पता था कि उनकी मृत्यु के बाद भारत के लोग अंग्रेज़ों से लड़ने के लिए प्रेरित होंगे। वे जाग जाएँगे। इसलिए वे स्वराज्य की नींव बनना चाहती थीं।

अभिव्यक्ति-सृजनात्मकता

4 Marks Questions and Answers

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह पंक्तियों में लिखिए।

प्रश्न 1.
मंजिल है कि पास आकर भी हर बार दूर चली जाती है – महारानी लक्ष्मीबाई ने ऐसा क्यों कहा होगा?
उत्तर:
मंजिल है कि पास आकर भी हर बार दूर चली जाती है – महारानी लक्ष्मीबाई ने निम्नलिखित कारणों से ऐसा कहा होगा । लक्ष्मीबाई स्वराज्य की प्राप्ति के लिए खूब कोशिश कर रही थी। लेकिन उनको मार्ग पर बहुत कष्ट आ रहे थे। उन कष्टों को झेलकर आयी तो इधर सेनापति विलासिता में डूबे हुए थे। उनको स्वराज्य प्राप्त होने की आशा मिलती थी, दूसरे ही क्षण में मार्ग में हिमालय पहाड अड जाता था। लक्ष्मीबाई हिमालय रूपी कष्ट को पार करती थी तो महासागर भयानक लहरों से टकराते हुए सामने आती थी। लक्ष्मीबाई उन लहरों को भी रोकती तो यहाँ सेनापति तात्या विलासिता में डूबकर सो रहा था, जैसे कष्टों के समय में नाविक सो रहा था। कष्ट समय में नाविक सोता तो नाव डूब जाता है। लक्ष्मीबाई को ही इनको संभालना पडता है।

प्रश्न 2.
लक्ष्मीबाई के जीवन से हमें क्या संदेश मिलता है?
उत्तर:

  • लक्ष्मीबाई के जीवन से हमें ये संदेश मिलते हैं –
  • हर एक नागरिक को देश – प्रेम तथा देश – भक्ति के साथ रहना चाहिए।
  • हर एक को विलासिता से दूर रहना चाहिए। देश के लिए मर मिटना चाहिए।
  • छुआछूत और ऊँच – नीच के भेदों को भूलकर जन सेवक बनना चाहिए।
  • सेवा, तपस्या और बलिदान आदि गुणों से ओतप्रोत होना चाहिए।
  • अबला हमेशा अबला नहीं आवश्यकता पड़ने पर वह सबला भी बन सकती है।
  • हर एक को स्वराज्य की नींव का पत्थर बनना चाहिए।

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प्रश्न 3.
“स्वराज्य की नींव एकाकी को दृष्टि में रखकर रानी लक्ष्मीबाई के त्याग और बलिदान पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
रानी लक्ष्मीबाई कहती हैं कि जीत हो या हार, मुझे किसी बात की चिंता नहीं। चिंता केवल इस बात की है, हमारी वीरता कलंकित न होने पाये। हम सब मिलकर या तो स्वराज्य प्राप्त करके रहेंगे या स्वराज्य की नींव का पत्थर बनेंगे। इन पंक्तियों में रानी लक्ष्मीबाई की स्वतंत्रता की तड़प स्पष्ट दिखाई देती है। लेकिन साथ ही वह एक ऐसे स्वतंत्र भारत की कल्पना करती थीं जहाँ समाज में भेदभाव न हो। लक्ष्मीबाई मातृभूमि को माता के समान मानती हैं। वे मातृभूमि को अंग्रेजों के हाथों अपवित्र नहीं होने देना चाहतीं। वे भारत माता को गुलाम होते नहीं देख सकतीं। इसी कारण उन्हें मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए लड़ते हुए अपने प्राण त्याग दिये।

प्रश्न 4.
स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए लक्ष्मीबाई तरसती थी, पठित पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
रानी लक्ष्मीबाई कहती हैं कि जीत हो या हार, मुझे किसी बात की चिंता नहीं। चिंता केवल इस बात की है, हमारी वीरता कलंकित न होने पाये। हम सब मिलकर या तो स्वराज्य प्राप्त करके रहेंगे या स्वराज्य की नींव का पत्थर बनेंगे। इन पंक्तियों में रानी लक्ष्मीबाई की स्वतंत्रता की तड़प स्पष्ट दिखाई देती है। लेकिन साथ ही वह एक ऐसे स्वतंत्र भारत की कल्पना करती थीं जहाँ समाज में भेदभाव न हो। लक्ष्मीबाई मातृभूमि को माता के समान मानती हैं। वे मातृभूमि को अंग्रेजों के हाथों अपवित्र नहीं होने देना चाहतीं। वे भारत माता को गुलाम होते नहीं देख सकतीं। इसी कारण उन्हें मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए लड़ते हुए अपने प्राण त्याग दिये।

प्रश्न 5.
रानी लक्ष्मीबाई का जीवन नारी जगत के लिए प्रेरणादायक है । स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लक्ष्मीबाई का जीवन नारी जगत के लिए प्रेरणादायक है । क्योंकि नारी को अबला समझा जाता है। रानी लक्ष्मीबाई ने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व करके यह सिद्ध कर दिया कि नारी अबला नहीं सबला है। इसी प्रकार हमारी महिला बहनों और माताओं को भी स्वयं को कमज़ोर नहीं समझना चाहिए। उन्हें घर और परिवार मात्र में कैद नहीं रहना चाहिए। उन्हें भी अपने अस्तित्व का विकास करना चाहिए। समाज में नाम कमाने का प्रयास करना चाहिए।

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प्रश्न 6.
महारानी लक्ष्मीबाई का कौनसा कथन तुम्हें अच्छा लगा ? क्यों ?
उत्तर:
महारानी लक्ष्मीबाई के स्वराज्य से संबंधित यह विवरण मुझे बहुत अच्छा लगा क्यों कि वह तात्या से इस प्रकार कहती है – “मेरा मन कहता है कि यह मेरे जीवन का अंतिम युद्ध है। जीत हो या हार, मुझे किसी बात की चिंता नहीं। चिंता केवल इस बात की है, हमारी वीरता कलंकित न होने पाये। क्योंकि इसमें लक्ष्मीबाई की वीरता का परिचय हमें मिलता है। वह यह चाहती है कि युद्ध में हार मिलने पर भी उसकी वीरता को कलंक न मिलने की आशंका प्रकट करती है। इसीलिए मुझे यह कथन बहुत अच्छा लगा।

अभिव्यक्ति-सृजनात्मकता

8 Marks Questions and Answers

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 8-10 पंक्तियों में लिखिए।

प्रश्न 1.
स्वतंत्रता आन्दोलन की नींव रखने में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई सफल हुई – इस पर व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पाठ का नाम : “स्वराज्य की नींव”
लेखक का नाम : “विष्णु प्रभाकर”

  • लक्ष्मीबाई बडी वीरांगना है।
  • उसने यह साबित किया कि अबला हमेशा अबला नहीं रहती । आवश्यकता पड़ने पर वह सबला भी बन सकती है।
  • उसने झाँसी की स्वतंत्रता तथा स्वराज्य के लिए अंग्रेज़ी सरकार का बड़ी वीरता के साथ सामना किया।
  • उसने झाँसी, कालपी और ग्वालियर के लिए युद्ध किया। वह नूपुरों की झंकार के स्थान पर तोपों का गर्जन सुनना चाहती थीं।
  • अबला होने पर भी तलवार हाथ में लेकर युद्ध करती रही ।
  • लक्ष्मीबाई सेवा, बलिदान और तपस्या की देवी है।
  • रण – भूमि में अपनी जान की बलि देकर स्वतंत्रता की सच्ची आधारशिला बनी।
  • स्वराज्य को प्राप्त करने के लिए अपनी बलि देकर भी आनेवाली पीढी के लिए मार्ग दिखाना और प्रेरणा देना ही उसका मुख्य लक्ष्य रहा।
  • उनकी बातों से प्रेरित होकर तात्या, नाना साहेब, मुंदर, जूही तथा देश की जनता भी स्वराज्य की प्राप्ति के लिए मर मिटने तैयार हुये।
  • इसलिए हम कह सकते हैं कि स्वतंत्रता आन्दोलन की नींव रखने में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई सफल हुई।

प्रश्न 2.
महारानी लक्ष्मीबाई वीरता की प्रतिमूर्ति है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शीर्षक का नाम : “स्वराज्य की नींव”
कवि का नाम : “विष्णु प्रभाकर” * लक्ष्मीबाई बडी वीरांगना है।

  • उसने यह साबित किया कि अबला हमेशा अबला नहीं रहती। आवश्यकता पड़ने पर वह सबला भी बन सकती है।
  • उसने झाँसी की स्वतंत्रता तथा स्वराज्य के लिए अंग्रेज़ी सरकार का बड़ी वीरता के साथ सामना
  • किया। उसने झाँसी, कालपी और ग्वालियर के लिए युद्ध किया।
  • वह नूपुरों की झंकार के स्थान पर तोपों का गर्जन सुनना चाहती थी।
  • अबला होने पर तलवार हाथ में लेकर युद्ध करती रही।
  • लक्ष्मीबाई सेवा, बलिदान और तपस्या की देवी है।
  • रण – भूमि में अपनी जान की बलि देकर स्वतंत्रता की सच्ची आधारशिला बनी।
  • स्वराज्य को प्राप्त करने के लिए अपनी बलि देकर भी आनेवाली पीढ़ी के लिए मार्ग दिखाना और प्रेरणा देना ही उसका मुख्य लक्ष्य रहा।
  • इसलिए हम कह सकते हैं कि महारानी लक्ष्मीबाई वीरता की प्रतिमूर्ति है।

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प्रश्न 3.
‘स्वराज्य की नींव एकांकी की ऐतिहासिकता अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:

  • झाँसी पर अंग्रेजी लोग अपना अधिकार रखना चाहते थे।
  • सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक परिस्थितियों का पतन हुआ था। * राजा विलास प्रिय थे।
  • राजाओं में एकता नहीं थी।
  • स्वतंत्रता के लिए संघर्षमय वातावरण था।
  • स्त्रियों की सेना बनाकर झाँसी लक्ष्मीबाई युद्ध के लिए प्रयत्न कर रही थी।
  • लक्ष्मीबाई स्वराज्य की नींव डालना चाहती थी।
  • लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से कहती है कि मैं अपनी झाँसी कभी नहीं दूंगी।
  • झाँसी 1857 के विद्रोह का एक प्रमुख केंद्र बन गया था।
  • झाँसी की सुरक्षा के लिए लक्ष्मीबाई ने युद्ध करना शुरू कर दिया।
  • 18 जून 1858 को लक्ष्मीबाई ने वीरगति प्राप्त की।

प्रश्न 4.
विष्णु प्रभाकर की एकांकी का शीर्षक ‘स्वराज्य की नींव’ क्यों रखा गया होगा?
उत्तर:
सन् सत्तावन के समय भारत देश पर अंग्रेज़ों का शासन रहा था। अंग्रेज़ लोग भारत के सभी प्रांतों पर आक्रमण कर रहे थे। लक्ष्मीबाई झांसी की रानी थी। अंग्रेज़ लोग झांसी को भी अपने वश करने युद्ध कर रहे थे। बाबा गंगादास, लक्ष्मीबाई से कहते हैं कि स्वराज्य प्राप्त करने के लिए सभी भारतवासी अपनी विलासिता को छोड़कर जन सेवक बनना है। स्वराज्य की प्राप्ति से उत्तम है स्वराज्य की स्थापना के लिए भूमि तैयार करना हर एक को स्वराज्य की नींव का पत्थर बनना है। इसका अर्थ है सब लोगों में स्वराज्य प्राप्ति की इच्छा होनी चाहिए। नींव के पत्थर बनने से कोई नहीं रोक सकते हैं। यह सब का अधिकार है। इसी आशय पर जोर देते इस एकांकी का शीर्षक ” स्वराज्य की नींव रखा होगा।

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प्रश्न 5.
“स्वराज्य की नींव एकांकी के आधार पर लक्ष्मीबाई का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
‘स्वराज्य की नींव’ के एकांकीकार श्री विष्णु प्रभाकर जी हैं। इनका जन्म सन् 1912 में हुआ। भारत सरकार ने इन्हें “पद्म भूषण” सम्मान से सम्मानित किया है।

  • प्रस्तुत एकांकी प्रथम स्वतंत्रता संग्राम पर आधारित है। इसमें महारानी लक्ष्मीबाई की वीरता की गाथा है। जिन्होंने स्वराज्य की नींव डाली।
  • वीरांगना लक्ष्मीबाई एक साहसी, कर्मपरायण, देश प्रेमी नारी थी। उसने अंग्रेजों की नींद हराम कर दी थी।
  • वह अंग्रेजों की कूट नीति को सफ़ल नहीं होने दे रही थी। वह नूपुरों की झंकार की अपेक्षा तोपों की गर्जना सुनना चाहती थी।
  • उन्होंने यह सिद्ध कर दिखाया था कि आवश्यकता पड़ने पर अबला भी सबला बन सकती है।
  • अंग्रेजी, झाँसी, कालपी, ग्वालियर आदि राज्यों को हस्तगत कर लेना चाहते थे। लेकिन रानी
    लक्ष्मीबाई ने इसका डटकर विरोध किया। राज्य में ऊँच – नीच और छुआछूत की भावनाओं को मिटाना, सेवा, तपस्या बलिदान से स्वराज्य प्राप्त करने के हर संभव प्रयास किये।
  • राज्य में अनुशासन युक्त सेना तैयार की। साथ ही आवश्यक योजनाएँ बनाकर अमल में लाया। युद्ध के लिए आवश्यक सामग्री संचित की। ।
  • अंग्रेजों से वीरतापूर्वक युद्ध करते हुये वीरगति को प्राप्त कर ली।
  • इस प्रकार हम कह सकते हैं कि वीरांगना लक्ष्मीबाई देशभक्ति की एक अद्भुत मिसाल थी और यह सिद्ध किया कि लक्ष्मीबाई ने सच्चे अर्थों में स्वतंत्रता की नींव रखी थी।