AP State Board Syllabus AP SSC 10th Class Hindi Textbook Solutions Chapter 7 भक्ति पद Textbook Questions and Answers.
AP State Syllabus SSC 10th Class Hindi Solutions Chapter 7 भक्ति पद
10th Class Hindi Chapter 7 भक्ति पद Textbook Questions and Answers
InText Questions (Textbook Page No. 39)
प्रश्न 1.
भगवत भक्ति का ज्ञान कौन देता है?
उत्तर:
भगवत भक्ति का ज्ञान गुरु देता है।
प्रश्न 2.
गुरु को किससे श्रेष्ठ बताया गया है? क्यों?
उत्तर:
गुरु को गोविंद (भगवान) से श्रेष्ठ बताया गया है। क्योंकि भगवत और भगवान भक्ति का ज्ञान हमें उन्होंने (गुरु) ही दिया है।
प्रश्न 3.
“निराडंबर भक्ति भावना’ का क्या महत्व है?
उत्तर:
निराडंबर भक्ति भावना का महत्व बहुत अधिक है। सच्चा भक्त तो निराडंबर ही होता है। भगवान की उपासना सच्चे हृदय से की जाती है। न कि ठाट – बाट और आडंबरों से।
InText Questions (Textbook Page No. 40)
प्रश्न 1.
प्रभु के प्रति रैदास की भक्ति कैसी है?
उत्तर:
प्रभु के प्रति रैदास की भक्ति “दास्य भक्ति” है।
प्रश्न 2.
कवि ने अपने आपको मोर क्यों माना होगा?
उत्तर:
घने बादलों को देख कर मोर खूब नाचता है आनंद विभोर हो जाता है। उसी प्रकार रैदास भगवान रूपी बादल को देखकर खूब आनदं विभोर हो जाता है। इसलिए कवि ने अपने को मोर माना होगा।
प्रश्न 3.
संत किसे कहते हैं?
उत्तर:
जिनमें अच्छे गुण हैं (सत्गुरु) जो राम रतन धन की प्राप्ति में सहायता देता है वही संत कहा जाता है|संत दूसरों की हित में रहते हैं। अच्छे मार्ग पर चलने का संदेश देते हैं।
प्रश्न 4.
श्रीकृष्ण के प्रति मीरा की भक्ति कैसी है?
उत्तर:
श्रीकृष्ण के प्रति मीरा की भक्ति माधुर्य की है। वह माधुर्य भाव से अपने प्रभु गिरिधर नागर श्रीकृष्ण का यश गान आनंद के साथ गाती है।
अर्थवाह्यता-प्रतिक्रिया
अ) प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
प्रश्न 1.
रैदास व मीरा की भक्ति भावना में क्या अंतर है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
रैदास मीराबाई का गुरु हैं। दोनों भक्ति काल के कवि और कवइत्री हैं। रैदास की भक्ति भावना सख्य तथा दास्य भक्ति का सम्मिलित रूप है। रैदास के अंग – अंग में भक्ति भावना ओत प्रोत है। रैदास भगवान को चंदन, घन – बन, मोती और स्वामी के रूप में मानते हैं। __उसी प्रकार कवइत्री मीरा की भक्ति में माधुर्य भाव अधिक है। श्रीकृष्ण के प्रति मीरा की भक्ति माधुर्य की है। वह माधुर्य भाव से अपने प्रभु गिरिधर नागर श्रीकृष्ण का यश गान आनंद के साथ गाती है। कवइत्री मीराबाई भगवान के नाम रूपी नाव से ही संसार रूपी सागर से तर सकने का मार्ग सोचती है। सही मार्ग दर्शन करने वाला गुरु ही समझती है। दोनों के भक्ति पद रागात्मक शैली में गाये जाते हैं। मीराबाई की भक्ति भावना में माधुर्य है।
प्रश्न 2.
हमारे जीवन में भक्ति भावना का क्या महत्व है? चर्चा कीजिए।
उत्तर:
हमारे जीवन में भक्ति का बड़ा महत्व है। भक्ति भावना के बिना रहना मुश्किल है। भक्ति मनुष्य के सारे विकारों को नाश करती हैं। निर्मल और पवित्र बनाती है। अहंकार, मोह, लोभ आदि भाव को नष्टकर देती है। सब कार्यों को संभव करने की शक्ति देती है। जीवन को सफल बनाती है।
आ) पंक्तियाँ उचित क्रम में लिखिए।
प्रश्न 1.
प्रभुजी, तुम पानी हम चंदना
उत्तर:
प्रभुजी, तुम चंदन हम पानी।
प्रश्न 2.
मीरा के प्रभु नागर गिरिधर, हरख – हरख गायो जस ||
उत्तर:
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर, हरख – हरख जस गायो।
इ) नीचे दी गई पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 1.
सत की नाँव खेवटिया सतगुरु, भवसागर तर आयो।
उत्तर:
इस वाक्य में मीराबाई सत्य तथा सद्गुरु की महिमा बताती हैं। मीरा कहती हैं कि मेरी नाव सत्य की है। मेरी नाव खेनेवाला सद्गुरु है। सतगुरु की कृपा से ही भवसागर रूपी संसार को पार कर सकती हूँ।
प्रश्न 2.
प्रभुजी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग – अंग बास समानी। ।
उत्तर:
इस वाक्य में कविवर श्री रैदास जी भगवान को चंदन के रूप में और अपने आपको पानी के रूप में वर्णन करते हैं। रैदास कहते हैं कि हे भगवान तुम चंदन हो और मैं पानी हूँ। चंदन और पानी के मिलने से पानी के अंग – अंग में सुवास निकलता है। जिसे हम अपने शरीर को लगाने से सुगंध निकलता है।
ई) पद्यांश पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
मैया मोरि में नाहि माखन खायो,
भोर भयो गैयन के पाछे मधुबन मोहि पठायो। ।
चार पाठर बंसीवट भटक्यो साँझ परे घर मायो,
मैं बालक माहिंचन को छोटो छौंको केहि विधि पायो।
व्वाल बाल सब बैर परे हैं बरबस मुख लपटायो,
यह ले अपनी लकुटी कमरिया बहुतहि नाच नचायो।
तब बिहंसी जसोदा. ले उर कंठ लगायो। – महाकवि सूरवाल ।
1. कृष्ण किनसे बातें कर रहे हैं?
अ) यशोदा
आ) देवकी
इ) सीता
ई) पार्वती
उत्तर :
अ) यशोदा
2. कृष्ण गायों को चराने कहाँ जाते हैं?
अ) मधुबन
आ) शांतिवन
इ) राजवन
ई) सुंदरवन
उत्तर :
अ) मधुबन
3. कृष्ण घर कब लौटते हैं?
अ) सुबह
आ) दोपहर
इ) शाम
ई) रात
उत्तर :
इ) शाम
4. कृष्ण की बाहें कैसी हैं?
अ) छोटी
आ) मोटी
इ) चौड़ी
ई) लंबी
उत्तर :
अ) छोटी
5. “बैर’ शब्द का अर्थ क्या है?
अ) मित्र
आ) मित्रता
इ) शत्रु
ई) शत्रुता
उत्तर :
इ) शत्रु
अभिव्यक्ति – सृजनात्मकता
अ) इन प्रश्नों के उत्तर तीन – चार पंक्तियों में लिखिए।
प्रश्न 1.
रैदास जी ने ईश्वर की तुलना चंदन, बादल और मोती से की है। आप ईश्वर की तुलना किससे करना चाहेंगे? और क्यों ?
उत्तर :
मैं तो ईश्वर की तुलना दयालु, दानी, पाप जि को हारी अनाथ – नाथ, ब्रह्म, स्वामी, माँ – बाप, गुरु और मित्र के समान करता हूँ। क्योंकि ईश्वर दीनों पर दया करनेवाला है तो मैं दीन हूँ। ईश्वर दानी है तो मैं भिखमंगा हूँ। ईश्वर पाप कुंजी हारी है तो मैं उजागर पापी हूँ। ईश्वर अनाथों का नाथ है तो मैं अनाथ हूँ। ईश्वर ब्रह्म है तो मैं जीव हूँ। ईश्वर स्वामी है तो मैं सेवक हूँ। इतना ही क्यों भगवान (ईश्वर) माँ – बाप, गुरु और मित्र सब प्रकार से मेरा हित करने वाला है।
प्रश्न 2.
मीरा की भक्ति भावना कैसी है? अपने शब्दों में लिखिए।
(या)
मीरा की भक्ति माधुर्य भाव की थी। उनके पदों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
मीरा भक्ति काल की कवइत्री है। वह कृष्णोपासिका है। वह भगवान श्रीकृष्ण को अपना पति मानकर पूजा करती है। उनकी भक्ति माधुर्य भक्ति है। – मीराबाई जी ने सद्गुरु की महिमा तथा कृपा के बारे में वर्णन किया है। मीराबाई कहती है कि “मैं राम रतन धन पायी हूँ। यह अमूल्यवान वस्तु है। मेरे सद्गुरु जी ने बहुत कृपा के साथ मुझे दी है। यह जन्म – जन्म की पूँजी है।”
आ) “मीरा के पद” का भाव अपने शब्दों में लिखिए।
(या)
मीराबाई के भक्ति पदों का भाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
पाठ का नाम . : भक्ति के पद
कवइत्री : मीराबाई
जीवनकाल : सन् 1498 सन् 1573
रचना : मीराबाई पदावली
विशेषता : माधुर्य भाव
इस प्रस्तुत पद में मीराबाई जी ने सतगुरु की महिमा तथा कृपा के बारे में वर्णन किया है। मीराबाई कहती है कि “मैं राम रतन धन पायी हूँ। यह अमूल्यवान वस्तु है। मेरे सद्गुरु जी ने बहुत कृपा के साथ मुझे दी है। यह जन्म – जन्म की पूँजी है। इसे प्राप्त करने के लिए मैंने जग में सभी खोया।
जो पूँजी मैंने पायी वह खर्च नहीं होगी। इसे कोई चोर भी लूट नहीं सकेगा। यह दिन – दिन सवाये मूल्य की बढ़ती जाती है। मेरी नाव जो है वह सत्य की है। इसे खेनेवाला मेरे गुरु जो हैं वे सद्गुरु हैं। मैं सद्गुरु की कृपा से ही भव सागर को तर सकती हूँ। मेरे स्वामी (भगवान) तो गिरिधर नागर श्रीकृष्ण हैं। मैं खूब प्रसन्नता के साथ उनके यशो गीत गाऊँगी।
विशेषता : इसमें गुरु की महिमा का वर्णन है।
इ) भक्ति भावना से संबंधित छोटी-सी कविता का सृजन कीजिए।
उत्तर :
हे कृष्ण हम पर रखो सदा कृपा
हर दिन गाये गुण गान आपका
पाप कूप से बचाते रहो हमें सदा
नित करो कल्याण इस धर का
अपनाओ विश्व बंधुत्व भावना सब में
सब में भरो भाईचारे का संदेशा ||
ई) भक्ति और मानवीय मूल्यों के विकास में भक्ति साहित्य किस प्रकार सहायक हो सकता है?
उत्तर :
छात्रों में भक्ति तथा मानवीय मूल्यों के विकास की आवश्यकता है। इसके लिए मीरा, रैदास तथा बिहारी जैसे कवियों की रचनाएँ सहायक हो सकती हैं। भगवान के प्रति प्रेम ही भक्ति है। भगवत भक्ति से जीवन में सत्व्यवहार, सत्य विचार, आदर भाव आदि मूल्य विकसित होते हैं। रैदास ने भगवान को पाने का मार्ग, कर्म बताया । बिहारी के अनुसार मनुष्य के स्वभाव में अंतर नहीं पड़ता। इससे हम भक्ति भावना के साथ रहेंगे। नैतिक जीवन को अपनायेंगे।
भाषा की बात
अ) सूचना पढ़िए । वाक्य प्रयोग कीजिए।
प्रश्न 1.
प्रभु, पानी, चंद्र (एक – एक शब्द का वाक्य प्रयोग कीजिए और उसके पर्याय शब्द लिखिए।)
उत्तर :
वाक्य प्रयोग
- प्रभु – प्रभु श्रीकृष्ण तेरी रक्षा करें।
- पानी – प्यास लगने पर हम पानी पीते हैं।
- चंद्र – चंद्र चाँदनी फैला रहा है।
पयार्य शब्द
- प्रभु – भगवान, ईश्वर, स्वामी
- पानी – जल, नीर
- चंद्र – चंद्रमा, चाँद, शशि
प्रश्न 2.
स्वामी, गुरु, दिन (एक – एक शब्द का विलोम शब्द लिखिए और उससे वाक्य प्रयोग कीजिए।)
उत्तर :
- विलोम शब्द
- स्वामी × दास
- गुरु × शिष्य
- दिन × रात
वाक्य प्रयोग
- स्वामी : भगवान को अपना स्वामी और हमें उनका दास मानकर पूजा करना चाहिए।
- गुरु : गुरु पढ़ाता है और शिष्य पढ़ता है।
- दिन : दिन मैं चाँद को और रात में सूरज को कौन देख सकते हैं?
प्रश्न 3.
चदंन, सबी, भस्ति (वर्तनी सही कीजिए।)
उत्तर :
चंदन, सभी, भक्ति
आ) सूचना पढ़िए। उसके अनुसार कीजिए।
प्रश्न 1.
बन, रतन, किरपा (तत्सम रूप लिखिए।)
उत्तर :
वन, रत्न, कृपा
प्रश्न 2.
जग, नाँव, अमोलक (अर्थ लिखिए।)
उत्तर :
जग = दुनिया, संसार
नाँव = नौका, नाव
अमोलक = अमूल्य
इ) वचन बदलकर वाक्य फिर से लिखिए।
प्रश्न 1.
मोती सागर में मिलता है।
उत्तर :
मोती सागर में मिलते हैं।
प्रश्न 2.
धागे से माला बनती है।
उ. धागे से मालाएँ बनती हैं।
प्रश्न 3.
मोर सुदंर पक्षी है।
उत्तर :
मोर सुंदर पक्षी हैं।
ई) 1. नीचे दिया गया उदाहरण समझिये। पाठ के अनुसार उचित शब्द लिखिए।
परियोजना कार्य
“भगवान की उपासना सच्चे हृदय से की जाती है न कि ठाट – बाट और आडंबरों से “इस भावना को दर्शानेवाली किसी कविता का संग्रह कर कक्षा में प्रदर्शन कीजिए।
उत्तर :
“ठुकरा दो या प्यार करो”
देव तुम्हारे कई उपासक, कई ढंग से आते हैं,
सेवा में बहुमूल्य भेंट वे, कई रंग के लाते हैं।
धूम – धाम से, साज – बाज से, वे मंदिर में आते हैं।
मुक्तामणि बहुमूल्य वस्तुएँ, लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं।
मैं ही हूँ गरीबिनी ऐसी, जो कुछ साथ नहीं लायी,
फिर भी साहस कर मंदिर में, पूजा करने को आयी।
धूप – दीप, नैवेद्य नहीं है, झाँकी का श्रृंगार नहीं,
हाथ, गले में पहनाने को, फूलों का भी हार नहीं।
स्तुति कैसे करूँ तुम्हारी, स्वर में है माधुर्य नहीं,
मन का भाव प्रकट करने को, वाणी में चातुर्य नहीं।
नहीं दान है, नहीं दक्षिणा, खाली हाथ चली आयी,
पूजा की भी विधि न जानती, फिर भी नाथ चली आयी।
पूजा और पुजापा प्रभुवर! इसी पुजारिन को समझो,
दान – दक्षिणा और निछावर, इसी भिखारिन को समझो।
मैं उन्मत्त प्रेम की लोभी, हृदय दिखाने आयी हूँ,
जो कुछ है बस यही पास है, इसे चढ़ाने आयी हूँ।
चरणों में अर्पित है, इसको चाहो, तो स्वीकार करो,
यह तो वस्तु तुम्हारी ही है, ठुकरा दो या प्यार करो।
भक्ति पद Summary in English
Raidas
The poet Raidas compares God and himself with various forms. O God! You are sandal. I am water. When mixed with sandal, the water becomes a romatic. If we besmear it, every limb of us will be fragrant. O Lord! You are a dark cloud. We are peacocks. When the sky is covered with dark clouds, the peacocks dance in joyous mood spreading their feathers. Similarly, we too dance in joy on seeing you. On seeing the moon, the ruddy goose will get pleasure. In the same way, like a peacock which gets pleasure on seeing clouds, I too will be glad on seeing you.
(Here the poet compares himself with a peacock and God with clouds.)
God! You are a pearl. I am thread. Exactly the same as a thread pierces into a pearl and wears a garland of pearls, I will be fortune by obtaining you. O Lord! You are my master. I am your servant. This is what is Raidas devotion.
Mirabail
Mirabai describes her piety, the greatness of devotion towards the name of Rama and the glory of the preceptor in her poems.
I acquired the wealth of Ramaratna. My preceptor kindly accorded me this invaluable thing to me. I lost everything in my life and procured this wealth. This valuable wealth will never be spent and diminished. The thieves will never steal it. It waxes day by day. In increases at the rate of one and a quarter percent every day. Mine is a boat of truth. It is a boat of virtues. My preceptor is its sailor. I will cross the sea of life through this. This Mirabai always glorifies her lord Giridhara Nagara Sri Krishna’s fame with great delight and acclamation.
भक्ति पद Summary in Telugu
రైదాస్
ఈ పద్యంలో కవి రైదాస్ గారు భగవంతుని – తనను వివిధ రూపాలలో పోల్చుచున్నాడు.
ఓ భగవంతుడా ! నీవు గంధానివి(చందనం). నేను నీటిని. గంధంతో నీటిని కలిపి రంగరించినప్పుడు ఆ నీరంతా సువాసన భరితమగుతుంది. దానిని మన శరీరమునకు వ్రాసుకున్న మన అంగాంగము సువాసన భరితమగును. ప్రభూ! నీవు దట్టమైన మేఘానివి. మేము నెమళ్ళము. నెమళ్ళు దట్టమైన మేఘాలు కమ్మినప్పుడు పురివిప్పి ఆనందంతో నాట్యమాడతాయి. అట్లే మేము నిన్ను గాంచి నాట్యమాడతాము. ఏ విధంగా చంద్రుని చూసి చకోర పక్షి ఆనందాన్ని పొందుతుందో అదే విధంగా మేఘాల వంటి నిన్ను చూసి నెమలి వంటి నేను ఆనందాన్ని పొందుతాను. స్వామీ! నీవు ముత్యానివి. నేను దారాన్ని, ముత్యాన్ని ఏ విధంగా దారం తనలో గుచ్చుకుని ముత్యాలసరాన్ని ధరింప చేసుకుంటుందో అట్లే నేను ముత్యము వంటి నిన్ను పొంది సౌభాగ్యవంతుణ్ణి అవుతాను. ప్రభూ! నీవు నా స్వామివి. నేను నీ దాసుణ్ణి. ఇదే ఈ వైదాసు భక్తి.
మీరాబాయి
ఈ పద్యంలో మీరాబాయి భగవంతునిపై తన భక్తిని, రామనామభక్తి గొప్పతనాన్ని గురు మహిమను వర్ణించుచున్నది.
నేను రామరత్న ధనాన్ని పొందితిని. ఈ అమూల్యమైన వస్తువును నాకు నా సద్గురువుగారు కృపతో ఇచ్చినారు. నేను నా జీవితంలో అన్నిటినీ కోల్పోయి జన్మజన్మల సందపను పొందితిని. నేను పొందిన ఈ అమూల్య సంపద ఖర్చు పెట్టినా ఖర్చు కానిది, తరగనిది. దొంగలు దీనిని దోచుకోలేరు. ఇది రోజు రోజుకీ వృద్ధి చెందుతుంది. ఇది ప్రతి రోజు 14 శాతం చొప్పున వృద్ధి చెందుతుంది. నా నావ సత్యపు నావ. మంచి గుణాల నావ. దీని నావికుడు మా సద్గురువు. దీని ద్వారా నేను భవసాగరాన్ని దాటుతాను. ఈ మీరాబాయి ఎల్లప్పుడు నా ప్రభువు గిరిధర నాగరుడు అయిన శ్రీకృష్ణుని కీర్తిని హర్షాతి రేకాలతో కీర్తిస్తూనే ఉంటుంది.
अभिव्यक्ति-सृजनात्मकता
2 Marks Questions and Answers
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तष्ट दो या तीन वाक्यों में लिखिए।
प्रश्न 1.
रैदास ने ईश्वर की तुलना किनसे की है?
उत्तर:
यह प्रश्न भक्ति पद’ नामक पद्य पाठ से दिया गया। रैदास ने अपनी रचनाओं में समर्पण की भावना, दास्य भक्ति को अधिक महत्व दिया। उन्होंने ईश्वर की तुलना चंदन, बादल, मोती और स्वामी से की है।
प्रश्न 2.
मीराबाई ने गुरु की महिमा के बारे में क्या बताया?
उत्तर:
मीरा का कहना है कि गुरु हमें अमूल्य ज्ञान देता है। ज्ञान ऐसा धन है जो खर्च करने से बढ़ता है। ज्ञान कोई चोरी भी नहीं कर सकता। दिन-ब-दिन यह सवा गुना बढ़ता है। गुरु द्वारा प्राप्त ज्ञान ही हमें भवसागर से पार लगाता है।
प्रश्न 3.
रैदास की भक्ति भावना कैसी है?
उत्तर:
रैदास की भक्ति दास भाव की है। वे ईश्वर को अपना स्वामी मानते थे। वे राम रहीम को एक मानते थे। मूर्ति पूजा, तीर्थ यात्रा जैसे दिखावटों पर इन्हें विश्वास नहीं है। इनकी भक्ति में सेवा भाव है।इनकी भक्ति में समर्पण की भावना है।
प्रश्न 4.
भगवान की तुलना तुम किससे करोगे? क्यों?
उत्तर:
भगवान की तुलना मैं प्रकृति से करूँगा। क्योंकि प्रकृति ही सबका पालन-पोषण करती है। यहीं से हम हवा और पानी पीते हैं। यहीं से हम रोटी, कपड़ा और मकान बनाते हैं। प्रकृति सबका समान भाव से ध्यान रखती है। इसकी गोद में हम खेल-कूदकर बड़े होते हैं। इसलिए मैं भगवान की तुलना प्रकृति से करूँगा।
प्रश्न 5.
माधुर्य भक्ति के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
ईश्वर को पति या सखा मानकर उनकी भक्ति करना माधुर्य भक्ति कहलाती है। मीराबाई का नाम माधुर्य भाव की भक्ति के लिए जाना जाता है। ईश्वर को पति या सखा मानकर उसके प्रति प्रेम रखना भक्ति की एक परंपरा है। इसमें हम स्वयं को ईश्वर के प्रति अर्पित कर देते हैं।
प्रश्न 6.
रैदास ने अपनी तुलना किन चीज़ों से की हैं?
उत्तर:
रैदास कहते हैं कि हे प्रभुजी! आप चंदन हो तो मैं पानी हूँ। तुम बादल हो तो मैं मोर हूँ। तुम मोती हो मैं धागा हूँ। मैं आपकी भक्ति में खो जाना चाहता हूँ! मैं तुम्हारा दास हूँ। उनकी भक्ति में समर्पण की भावना है।
प्रश्न 7.
मीरा भवसागर को कैसे पार करना चाहती हैं?
उत्तर:
मीरा भवसागर को सत्य के सहारे पार करना चाहती हैं। उनके गुरु ने उन्हें राम रत्न रूपी अनमोल ज्ञान दिया है। वे इस ज्ञान के सहारे कृष्ण भक्ति में लीन हैं। वे इस ज्ञान का प्रसार करते हुए, ईश्वर के गुण गाते हुए इस संसार रूपी भवसागर को पार करना चाहती हैं।
प्रश्न 8.
मीरा की भक्ति भावना के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
मीरा कृष्ण भक्ति कवयत्री हैं | उनकी भक्ति माधुर्य भक्ति की है। श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति भावना ही मीरा के पदों का मूल भाव है। उनके पदों में प्रेम, त्याग, भक्ति और आराधना के भाव हैं। मीराबाई हिन्दी की श्रेष्ठ कवयित्री हैं।
मीरा के पदों में उनकी आत्मा की पुकार है । उनमें हृदय की कसक है। वियोगिनी का क्रंदन है। आत्म निवेदन है और मार्मिकता तथा कोमलता का अद्भुत मिश्रण है। इन पदों में मीरा श्रीकृष्ण के दर्शन पाने का उद्देश्य प्रकट करती हैं। मीरा की भक्ति माधुर्य भाव की है। आत्म समर्पण की है।
प्रश्न 9.
मीराबाई के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
- मीराबाई भक्तिकाल की कवयित्री है। मीराबाई का जन्म सन् 1498 में हुआ।
- उनकी मृत्यु सन् 1573 में हुई।
- मीराबाई कृष्णोपासिका है।
- उनकी प्रसिद्ध रचना मीराबाई पदावली है।
- माधुर्य भाव प्रयोग में वे पटु हैं।
प्रश्न 10.
रैदास का संक्षिप्त परिचय लिखिए।
उत्तर:
भक्तिकाल के ज्ञानमार्गी शाखा के प्रमुख कवियों में एक थे कविवर रैदास जी। इनका जन्म सन् 1482 में हुआ और मृत्यु सन् 1527 में हुई। इन्होंने भक्ति संबंधी अनेक चौपाइयों की रचना की। इनकी चौपाइयाँ (पद) “गुरुग्रंथ साहिब” में संकलित हैं। इन्होंने स्पष्ट किया कि भगवान के नाम रूपी नाव से ही संसार रूपी सागर से तर सकते हैं और भगवान को प्राप्त करने का सही मार्गदर्शन गुरु के द्वारा ही होता है।
अभिव्यक्ति-सृजनात्मकता
4 Marks Questions and Answers
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह पंक्तियों में लिखिए।
प्रश्न 1.
अपने मनपसंद तीन संत कवियों के नाम और उनकी रचनाएँ बताइए।
उत्तर:
मेरे मनपसंद तीन संत कवि कबीर, रैदास और रहीम हैं। कबीर ने बीजक नामक ग्रंथ लिखा है। इसके तीन भाग हैं- साखी, सबद और रमैनी। रैदास ने छिटपुट पद और भजन लिखे हैं। इनके पद गुरु ग्रंथ साहब में संकलित हैं। इनका असली नाम रविदास था। रहीम ने अनेक नीति दोहे लिखे हैं। रहीम दोहावली, रहीम सतसई, बरवै नायिका भेद, शृंगार सोरठा आदि उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं।
प्रश्न 2.
‘भवसागर’ पार करने के लिए हमें किनकी ज़रूरत है?
उत्तर:
भवसागर पार करने के लिए हमें गुरु की ज़रूरत है। गुरु हमें ज्ञान देता है। इस ज्ञान को हमसे कोई छीन नहीं सकता। इसे जितना खर्च करो उतना बढ़ता है। गुरु ज्ञान के सहारे हम अपने जीवन को सफल बनाते हैं। इसके सहारे ही हम संसाररूपी भवसागर को सफलतापूर्वक पार कर लेते हैं। हमारा नाम संसार में हमेशा के लिए अमर हो जाता है।
प्रश्न 3.
भक्ति मार्ग के द्वारा नैतिक मूल्यों का विकास कैसे हो सकता है?
उत्तर:
भक्ति मार्ग के द्वारा नैतिक मूल्यों का विकास होता है। भक्ति और नैतिक मूल्य परस्पर मिले-जुले हैं। एक भक्त किसी को नुकसान नहीं पहुँचा सकता। वह ईश्वर की बनाई हर वस्तु का सम्मान करता है। वह प्रकृति के कण-कण की रक्षा करता है। भक्ति का अर्थ है भगवान के प्रति विशेष प्रेम। भगवान के प्रति भक्ति रखने के लिए सहृदयता, सादगीपन,सत्यविचार, स्वच्छ मन, गुरु की महत्त्व, लोकमर्यादा और आदर्श मानवतावाद जैसे नैतिक मूल्यों की ज़रूरत होती है।
प्रश्न 4.
जीवन में गुरु का क्या महत्व है? अपने शब्दों में लिखिए |
उत्तर:
जीवन में गुरु का विशेष महत्व है। गुरु हमें ज्ञान देता है। ज्ञान हमें अच्छे-बुरे में भेद करना सिखलाता है। गुरु का सच्चा ज्ञान हमें सत्य के मार्ग पर ले जाता है। गुरु द्वारा दिये ज्ञान को हमसे कोई छीन नहीं सकता। गुरु ज्ञान हमारे लिए एक अनमोल रल के समान है। इसके सहारे हम जीवन को सफल बना सकते हैं। संसार रूपी भवसागर को सफलतापूर्वक पार कर सकते हैं।
प्रश्न 5.
रैदास ने किन उदाहरणों के द्वारा भक्त और भगवान के बीच संबंध स्थापित किया?
उत्तर:
रैदास जी ने भगवान की तुलना चंदन, मेघ, मोती और स्वामी से की है। उनका कहना है कि ईश्वर चंदन है और हम पानी हैं। वह मेघ है और हम मोर हैं। हम धागा हैं और वह मोती है। वह मालिक है और हम उसके दास हैं।
प्रश्न 6.
मीरा की भक्ति भावना पर अपने विचार लिखिये।
उत्तर:
मीरा कृष्ण भक्ति कवयत्री हैं | उनकी भक्ति माधुर्य भक्ति की है। श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति भावना ही मीरा के पदों का मूल भाव है। उनके पदों में प्रेम, त्याग, भक्ति और आराधना के भाव हैं। मीराबाई हिन्दी की श्रेष्ठ कवयित्री हैं। मीरा के पदों में उनकी अन्तरात्मा की पुकार है | उनमें हृदय की कसक है। वियोगिनी का आर्त – क्रंदन है। आत्म निवेदन है और मार्मिकता तथा कोमलता का अद्भुत मिश्रण है। इन पदों में मीरा श्रीकृष्ण के दर्शन पाने का उद्देश्य प्रकट करती हैं। मीरा की भक्ति महान है।
प्रश्न 7.
मीरा ने कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति की किस प्रकार के धन से तुलना की है?
उत्तर:
कवइत्री कहती है कि मुझे राम नाम रूपी रत्न की पूँजी मिली। मुझे यह पूँजी सद्गुरु के द्वारा तथा उनकी कृपा से मिली। यह पूँजी मेरे कई जन्मों के लिए भी पर्याप्त है। इसे प्राप्त करने के लिए मैंने जगं के सांसारिक वैभवों को खो दिया।
मेरी पूँजी ऐसी है कि इसे खर्च करने पर भी खर्च नहीं होती, कोई चोर भी इसे नहीं चुरा सकता। यह हर दिन 1¼ (सवाये) मूल्य की होती है।
कवइत्री और कहती है कि मेरी नाव जो है वह सत्य की है। इसे खेने वाला सद्गुरु है। मैं उसकी कृपा से भव सागर को पार करती हूँ। मेरा भगवान तो श्रीकृष्ण (गिरिधर नागर) है। मैं हर्ष के साथ उसके यश गाती हूँ।
प्रश्न 8.
रैदास भगवान की उपासना कैसे करते हैं?
उत्तर:
शीर्षक का नाम : “भक्ति पद’ है।
कवि का नाम : “रैदास है।
- रैदास की चौपाइयों में समर्पण की भावना, दास्य भक्ति को अधिक महत्व दिया गया है।
- रैदास अपनी भक्ति के बारे में कहते हैं कि – हे प्रभू ! तुम चंदन हो तो मैं पानी हूँ।
- हे प्रभू ! तुम बादल हो तो मैं मोर हूँ।
- बादल रूपी भगवान को मोर रूपी भक्त देखता रहता है।
- प्रभू जी ! तुम मोती हो तो मैं धागा हूँ।
- आप से मिलने से मेरी सुंदरता बढ़ती है।
- प्रभुजी, तुम स्वामी हो तो मैं दास हूँ।
- इस प्रकार कवि रैदास जी ने अपने प्रभु के प्रति अपनी दास्य भक्ति दिखायी।
अभिव्यक्ति-सृजनात्मकता
8 Marks Questions and Answers
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर आठ या दस पंक्तियों में लिखिए।
प्रश्न 1.
रैदास की दास्य भक्ति भावना को भक्ति पद पाठ के आधार पर वर्णन कीजिए।
(या)
कवि रैदास की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिये।
उत्तर:
शीर्षक का नाम : “भक्ति पद है।
कवि का नाम : “रैदास” है।
जीवनकाल : सन् 1482 – सन् 1527
प्रसिद्ध रचना : ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में इनके पद संकलित हैं।
विशेष : ज्ञानमार्गी शाखा के प्रमुख कवियों में से एक।
- रैदास की चौपाइयों में समर्पण की भावना, दास्य भक्ति को अधिक महत्व दिया गया है।
- रैदास अपनी भक्ति के बारे में कहते हैं कि – हे प्रभू ! तुम चंदन हो तो मैं पानी हूँ।
- हे प्रभू ! तुम बादल हो तो मैं मोर हूँ।
- बादल रूपी भगवान को मोर रूपी भक्त देखता रहता है।
- प्रभू जी ! तुम मोती हो तो मैं धागा हूँ।
- आप से मिलने से मेरी सुंदरता बढ़ती है।
- प्रभुजी, तुम स्वामी हो तो मैं दास हूँ।
- इस प्रकार कवि रैदास जी ने अपने प्रभु के प्रति अपनी दास्य भक्ति दिखायी।
प्रश्न 2.
मीरा की भक्ति भावना पर अपने विचार स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कविता : भक्ति पद
कवइत्री : मीरा बाई
जीवनकाल : सन् 1498 सन् 1573
प्रसिद्ध रचना : मीराबाई पदावली
विशेषताएँ : कृष्णोपासक कवियों में प्रसिद्ध, माधुर्य भाव के प्रयोग में पटु।
मीराबाई कहती हैं कि मुझे मिली है, मुझे भगवान का नाम रूपी रतन संपत्ति मिली है। मेरे सतगुरु ने मुझे यह अमूल्य वस्तु दी हैं। उनकी कृपा से मैंने उसे स्वीकार किया है। जन्मजन्म की भक्ति रूपी मूलधन को मैंने पाया है। लेकिन इसके बदले में संसार के सभी चीजों को खोयी हूँ। फिर भी मैं बहुत खुश हूँ। क्योंकि इसे कोई भी नहीं खर्च कर सकता, कोई भी नहीं लूट सकता है। दिन – ब-दिन उसमें वृद्धि हो रही है। सच रूपी नाव के, नाविक मेरे सत्गुरु है। उन्ही के सहारे मैं भवसागर को पार चुका हूँ। मीरा के प्रभु गिरिधर चतुर है, उन्हीं मीराबाई खुशी – खुशी से गाती है । इस प्रकार मीरा इन पदों में श्रीकृष्ण को सत्गुरु की कीर्ति बनाकर उनका दर्शन करने का उद्देश्य प्रकट करती हैं।
विशेषता :
इसमें सांसारिक बंधनों का त्याग, ईश्वर के प्रति समर्पण की भावना है। रागात्मक ली है।
प्रश्न 3.
मीराबाई ने अपने पदों में गुरु की महिमा का वर्णन कैसे किया ?
उत्तर:
कविता : भक्ति पद
कवइत्री : मीरा बाई
जीवनकाल : सन् 1498 सन् 1573
प्रसिद्ध रचना : मीराबाई पदावली विशेषताएँ : कृष्णोपासक कवियों में प्रसिद्ध, माधुर्य भाव के प्रयोग में पटु।
- मीरा बाई ने अपने पदों में गुरु की महिमा का वर्णन बहुत ही अच्छे ढंग से किया है।
- मीरा ने गुरु के द्वारा राम नाम रूपी रत्न पाया है। यह रत्न अमूल्य धन है।
- गुरु ने कृपा करके उसे यह मंत्र दिया है। इसे पाने के लिए उसने सब कुछ खोया है।
- यह महा मंत्र जन्म – जन्मों का मूल धन है।
- यह ऐसा धन है जो खर्च करने पर भी खर्च नहीं होता।
- इसे चोर भी लूट नहीं सकता। यह दिन – ब – दिन बढ़ता ही जाता है।
- सत्य को नाव बनाकर, गुरु को केवट बनाकर भव रूपी सागर पार किया जाता है।
- मीरा कहती है कि प्रभु गिरिधारी आप बहुत चतुर हैं।
- मैं प्रसन्नता के साथ आप के यश का गान कर रही हूँ।
प्रश्न 4.
रैदास की भक्ति की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
- रैदास हिंदी साहित्य के भक्तिकाल के कवि है।
- वह ज्ञानमार्गी शाखा के प्रमुख कवि है।
- उसकी भक्ति दास्य भक्ति की है।
- रैदास भगवान को चंदन और अपने को पानी के रूप में वर्णन करते हैं।
- रैदास भगवान को घन – बन और अपने को मोर के रूप में वर्णन के उन दोनों की बीच के संबंध को बताते हैं। रैदास भगवान को दीपक के रूप में और अपने को बत्ती के रूप में वर्णन करते हैं।
- रैदास भगवान को मोती और अपने को धागा के रूप में समझते इन दोनों के बीच के संबंध बताते हैं।
- रैदास भगवान को स्वामी और अपने को दास के रूप में वर्णन करते हैं।
प्रश्न 5.
सामाजिक मूल्यों के विकास में ‘भक्ति’ किस प्रकार सहायक हो सकती है? भक्ति पदों के आधार पर उत्तर लिखिए।
उत्तर:
हमारे मानव जीवन में भक्ति का बड़ा महत्व है। प्रेम से श्रद्धा और श्रद्धा से भक्ति उत्पन्न होती है। सामाजिक प्राणी मानव को आदर्शमय जीवन बिताते निष्काम भावना से रहना है। भक्ति भावना इसका मूलमंत्र है। भक्ति में शक्ति होती है। भक्ति में ममत्व होता है।
मानव समाज में रहते हुए संतों की संगति, भगवान के गुणगान में अनुराग, गुरुसेवा, भगवान का गुणगान, निष्काम कर्म, विश्व को ईश्वरमय समझना, दूसरों के अपकार गुणों पर ध्यान न देना, निष्कपट रहना आदि भक्ति के महान गुण हैं। भक्ति ये सब सद्गुण देती है। वह संकल्प की दृढता देती है। वह शांति और आनंद देती है। भक्ति पदों में हमें यही भावना स्पष्ट होती है। सामाजिक मूल्यों के विकास में भक्ति ही बडा असरदार है। इस कथन के द्वारा हम स्पष्ट कर सकते हैं।
प्रश्न 6.
रैदास के पदों के आधार पर उनकी भक्ति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रैदास को रविदास भी कहते हैं। ये निर्गुण भक्ति शाखा के ज्ञानमार्गी शाखा के कवियों में प्रमुख हैं। रैदास की भक्ति भावना दास्य भाव की है।
रैदास ने ईश्वर की तुलना चंदन से की है। और स्वयं की पानी से। क्योंकि चंदन में पानी को मिलाने से ही पानी का प्रत्येक कण सुगंधित हो उठता है। उन्होंने ईश्वर को बादल और स्वयं को मोर माना है। जिस प्रकार बादलों को देखकर मोर खुशी से झूम उठता है और नाचने लगता है । उसी प्रकार भगवान के स्मरण मात्र से रैदास का मन झूम उठता है। चंद्र को देखकर चकोर संतृप्त होता है । उसी प्रकार भगवान के स्मरण से रैदास भी तृप्त हो जाते हैं। उन्होंने ईश्वर को मोती और स्वयं को धागा माना है। धागे में मोतियों को पिरोने से एक सुंदर माला बनती है और धागे का महत्व बढ़ जता है। जिस प्रकार मोती के बिना या धागे के बिना माला नहीं बनती। दोनों एक – दूसरे के पूरक हैं। उसी प्रकार सोने में सुहागे से ही चमक आती है और सुंदरता बढ़ जाती है। रैदास ईश्वर को स्वामी और स्वयं को दास मानते हैं। भगवान के प्रति उनकी भक्ति दास्य भाव की है।
प्रश्न 7.
मीराबाई के अनुसार जनम-जनम की पूँजी क्या है? समझाइए ।
उत्तर:
मीराबाई के अनुसार जनम-जनम की पूँजी गुरु द्वारा दिया गया ज्ञान है। उन्होंने गुरु की महिमा का गुणगान किया है। मीरा कहती हैं कि मेरे गुरु ने मुझे भक्ति रूपी धन दिया है। यह धन रामरूपी रत्न के समान है। गुरु की विशेष कृपा के कारण मुझे यह धन मिला है। मेरा सौभाग्य है कि उन्होंने मुझे अपनी शिष्या के रूप में स्वीकार किया। मैंने संसार में सबकुछ खोकर जन्म-जन्म की पूँजी प्राप्त कर ली है। वह पूँजी है- ज्ञान| यह ज्ञानधन अमूल्य है। इसकी विशेषता है कि यह कभी खत्म नहीं होता। खर्च करने पर यह बढ़ता है। इसे कोई चोर भी नहीं लूट सकता। यह धन दिन-प्रतिदिन बढ़ता जाता है। मीरा कहती हैं कि जीवन सत्य की नाव है। इसके केवट मेरे सतगुरु हैं। उन्होंने मुझे ज्ञान देकर भवसागर से पार उतार दिया। मेरे प्रभु गिरधर नागर हैं। मैं उनके समक्ष अपने गुरु का यश गा रही हूँ।
प्रश्न 8.
रैदास और मीराबाई के ‘भक्ति पद’ इस पाठ के आधार पर बताइए कि दोनों की भक्ति में मुख्य अंतर क्या हैं?
उत्तर:
रैदास ज्ञानमार्गी शाखा के प्रमुख कवि हैं। रैदास जी भगवान को ही उनके हर एक काम का भागीदार बनाकर उनको हमेशा ऊँचे स्थान पर रखना चाहते हैं।
रैदास भगवान को स्वामी बनाकर वह सेवक के रूप में रहना चाहते हैं। रैदास के प्रभु निराकार हैं।
मीराबाई कृष्णोपासक कवयित्रियों में श्रेष्ठ हैं और माधुर्य भाव प्रयोग में पटु हैं। उनके पद सरस और मधुर हैं। मीरा श्रीकृष्ण की उपासना करती हैं। बचपन में ही मीरा के मन में कृष्ण के प्रति प्रेम भाव . अंकुरित हुआ। वह प्रेम भाव, उम्र के साथ -साथ बढ़ता आया। उनकी भक्ति माधुर्य भक्ति की है। मीराबाई . बताती हैं भगवान के नाम रूपी नाव से ही संसार रूपी सागर को पार सकते हैं। इसका सही राह का मार्ग दर्शन गुरु द्वारा होता है। मीरा श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए प्राणों तक न्योछावर करती हैं।